Friday, December 4, 2009


दोस्त मेरा...

कभी फूल तो कभी गुल्नारों की बातें करता था
दोस्त मेरा चाँद सितारों की बातें करता था
दूर तलक कड़ी धूप में चलते चलते
दोस्त मेरा बहारों की बातें करता था
डूब गया गैरों को पार लगाने में
दोस्त मेरा किनारों की बातें करता था
ख़ुद अपनी हथेली पर पैर रखकर चला
दोस्त मेरा बेसहारों की बातें करता था
लहू भी जम गया है कहीं शिराओं में
दोस्त मेरा अपने प्यारों की बात करता था


दाग

तुम्हारे आँचल में टांकते हुए
चाँद सितारे मैंने जख्मी कर ली है
अपनी आत्मा तक
इससे टपका लहू का एक कतरा
अनचाहे ही तुम्हारे आँचल में
पा गया है पनाह
और हो गया है सुर्खरू
इस बात से बेखबर
तुम्हारी निगाहों में होगा ये एक
दाग

Saturday, October 3, 2009



अब शांति से सोने दो
मत सजाओ मुझे चौराहे पर,
अब शांति से सोने दो।
मत सुनाओ बच्चों को मेरी कहानी
कि मन में टीस उठती है,
मत रखो रास्तों के नाम मुझ पर
मेरे नंगे पैरों में छाले पड़ते हैं,
सब किया मैंने तुम्हारे लिए,
जिया हूं मैं बस तुम्हारे लिए,
मैंने जीना सिखाया सपने दिए,
देख सकते हो तुम, सोच सकते हो तुम,
बहुत कुछ कर सकते हो तुम।
मत सजाओ अब मेरी तस्वीर को
कि आंखें मेरी अब नम रहती हैं,
मत चढ़ाओ मुझ पर फूलों को तुम
नाजुक पंखुड़ियां भी चुभती हैं,
आज क्यों आए हो सर झुकाने अपना,
मेरी हर सांस तो हमेशा तुम्हें दुआ देती है।

Monday, August 17, 2009

समयांतर की वृद्धि

क्‍या तुमने देखा है
कलियों को फूल बनते हुए,
अपनो को पराए होते,
बीज का पौधा, पौधे का पेड,
बच्‍ची को लड़की, लड़की के दुल्‍हन
बनने का सफर,
ढूंढना मुश्किल है,
समयांतर की वृद्धि को
मुझे दिख नहीं रहा,
वह दिन, वह पल, वह क्षण
जब अलग हो गए
मेरे दुख
तुम्‍हारे सुखों से
पहले तो एक जैसे ही थे,
मेरे तुम्‍हारे सुख-दु्ख।

Sunday, August 9, 2009

अफसुर्दा होती नहीं हूं मैं।



बीज कोई अब नया बोती नहीं हूं मैं,
इ‍सलिए अफसुर्दा होती नहीं हूं मैं।
मिल न जाए कोई नया सूरज मुझे
इस डर से रात भर सोती नहीं हूं मैं।
मेरे दर्द उसकी आंखों से छलकते हैं,
मां जब सामने हो, रोती नहीं हूं मैं
एक दुआ को ओढ़ रखा है सिर पर,
मुश्किलों में हौसला खोती नहीं हूं मैं।
दर्द कोई भी हो, हंसकर उडा़ दिया
बेकार के लम्‍हों को ढोती नहीं हूं मैं।
मेरी आदतें जमाने का चलन न सही,
मैली ही चूनर सही, धोती नहीं हूं मैं।

Friday, August 7, 2009

किसी राह में किसी मोड़ पर...




जाने क्‍यों लगता है,
फिर मिल जाओगे मुझे
किसी राह पर किसी मोड़ पर,
जाने क्‍यों अजनबी शहर की
हर एक शय में,
बेबस निगाहें ढूंढ़ती हैं
तुम्‍हारी सी कोई पहचान,
जाने क्‍यों डूबते सूरज के साथ
मेरी लाल ओढ़नी में
महकने लगते हैं
तुम्‍हारी पीली डायरी के
कुछ सूखे फूल।
शहर के बेपनाह शोर में
उभरता है एक सन्‍नाटा
और गूंजने लगते हैं,
कुछ शेर, कुछ नज्म़ें
वो कविता जो पढ़ी थी
तुमने कभी मेरी आंखों में।
अचानक चमकती सड़क की
सफेद पट्टियां
बदल जाती हैं तुम्‍हारी शर्ट की पट्टियों में
जिस पर गिरा था
एक सुनहरा पंख पीपल के तले
अपनी उंगलियों से उठाकर जिसे
सुपुर्द किया था डायरी को,
जाने कैसे
रिक्‍शे की नीली छत
बदल जाती है नीली छतरी में
और बरसने लगता है सावन
यूं सिमटने लगती हूं मैं
जैसे मुझे घेरे हों तुम्‍हारी बाहें।
कभी-कभी कॉफी से उठता
सफेद धुआं तब्‍दील हो जाता है
एक बर्फबारी में,
जिससे जड़ जाती है
कमरे की हर चीज,
दो जलते हाथ थाम लेते हैं मुझे
और पिघलने लगती हूं मैं।
फिर मिल जाओगे मुझे,
किसी राह में किसी मोड़ पर...

Wednesday, August 5, 2009

भइया मत कहो

भइया शब्‍द यूपी और बिहार वालों की पहचान माना जाता है। ऐसा सुना है कि कुछ क्षेत्रों में इसे गाली भी माना जाता है। यकीनन वह क्षेत्र भारत के अत्‍याधुनिक क्षेत्रों में होंगे। वैसे मेरा मुद्दा यह है भी नहीं। आज राखी का त्‍योहार है, अरे नहीं भई राखी सावंत का नहीं। राखी नाम ही बदनाम हो गया है बिल्‍कुल भइया की ही तरह। जिसे चाहो बना लो भइया। आजकल भइया शब्‍द एक ऐसी ओढ़नी की तरह इस्‍तेमाल किया जाता है जिसे लड़कियां सुरक्षा का मजबूत कवच मान लेती हैं। पर क्‍या ऐसा होता है। अगर कोई लड़की किसी लड़के साथ ज्‍यादा हिलमिल जाती है तो समाज की निगाहें तिरछी हो जाती हैं जरूर कोई चक्‍कर है, लड़कियां बडे़ ही गुस्‍से में उन्‍हें भाई बनाते हुए कहती हैं कि अरे यह तो मेरा भइया है।
लड़कियां उन लड़कों को भइया बना डालती हैं जिनसे उन्हें थोडा़ भी खतरा महसूस होता है, यानि कि सुरक्षा का मजबूत कवच। लेकिन ऐसा होता नहीं। किसी की सोच आपके लिए बदल नहीं जाती। भइया कह देने मात्र से कोई पुरूष आपका भाई नहीं बन जाता। उसके विचार एक पुरुष की जगह एक भाई के नहीं हो जाते। अक्‍सर लड़के भी इस हथियार का इस्‍तेमाल कर ही लेते हैं कि तुम्‍हें मुझ पर भरोसा नहीं है, मैं तुम्‍हारे भाई जैसा हूं यार, चाहो तो इस रक्षाबंधन पर राखी बांध देना। गरज बस इतनी कि आप उन पर भरोसा कर उनसे बात करें, उनके साथ घूमें और वह आपका फायदा उठा सकें।
कार्यालयों में भी अक्‍सर लड़कियां कुछ ऐसे ही पैंतरों का इस्‍तेमाल करती हैं। जिससे उनका फायदा निकल सकता उसे भैया बना लेती हैं। हर किसी को भइया का संबोधन देकर अपने को सुरक्षित कर लेती हैं। जिसे उन्‍होंने भाई कह दिया उसकी नजरों में वह पाक साफ हो गई। आजकल तो हालात इतने खराब हो गए हैं कि प्रेमी-प्रेमिका दुनिया से खुद को बचाने का यही रास्‍ता समझ आता है कि एक-दूसरे को भाई बहन बता दो।
क्‍या दुनिया के बाकी रिश्‍ते अपवित्र ही होते हैं? क्‍या एक लड़का और एक लड़की का रिश्‍ता तभी पवित्र है जब वह भाई बहन हो? क्‍या किसी को भी भइया कह देने से वह आपका भाई बन जाता है? क्‍या हम इसे कोई और नाम नहीं दे सकते? हम इतने गंदे हैं या हमारा समाज कि इतने पवित्र रिश्‍ते को इस तरह से बदनाम करने पर मजबूर हैं?
भाई बहन का रिश्‍ता बहुत पवित्र रिश्‍ता है, यह रिश्‍ता है भरोसे का, यह रिश्‍ता है मानका, यह रिश्‍ता है रक्षा का। और भी रास्‍ते हैं खुद को सुरक्षित करने के, और भी रिश्‍ते हैं दुनिया में बनाने को, और भी रास्‍ते हैं खुद को दुनिया की नजरों से बचाने के और एक लड़का और लड़की अच्‍छे दोस्‍त भी हो सकते हैं बशर्ते आपके मन में कोई चोर न हो। ऑफिस में काम करने वाले आपके कलीग हैं उन्‍हें वही रहने दें तो अच्‍छा है तो कृपया इस रिश्‍ते का यूं अपमान न करें, इसलिए प्‍लीज हर किसी को भइया मत कहें।

Monday, August 3, 2009

क्‍या मुझसे दोस्‍ती करोगे

कहते हैं कि कुछ रिश्‍ते ऊपरवाला बनाता है, कुछ रिश्‍ते लोग बनाते हैं पर कुछ लोग बिना किसी रिश्‍ते के ही रिश्‍ते निभाते हैं शायद वही दोस्‍त कहलाते हैं। दोस्‍ती एक अनमोल रिश्‍ता है एक दोस्‍त में आप बहुत से रिश्‍तों का समावेश पा जाते हैं। कभी वह बाप की तरह डांटता है तो कभी भाई की तरह समझाता है। दोस्‍त वह होता है जिसके पास आपकी हर मुश्किल का हल होता है, दोस्‍त वह होता है जो बिना कहे ही आपकी सारी बातें समझ लेता है।
एक अच्‍छा दोस्‍त किस्‍मत से ही मिलता है। लेकिन आज हर गली और चौराहे पर आपको दोस्‍ती का उपहार खूबसूरत पैंकिंग में लिपटा हुआ मिल जाएगा। बहुत सी खुशबू बिखेरता और बहुत सी साज-सज्‍जाओं से लैस लोग आपको दोस्‍त बनाने को आतुर रहते हैं। इनका एक ही सवाल होता है क्‍या मुझसे दोस्‍ती करोगे, नई-नई बहार से मिलोगे। उनकी दोस्‍ती धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। आपके बचपन का दोस्‍त तो बस यह समझ पाता है कि आप क्‍या सोच रहे हैं लेकिन यह दोस्‍त तो वह भी समझ जाते हैं जो आप नहीं सोच रहे हैं।
इनकी दोस्‍ती की शुरुआत चैटिंग या फोन पर बात करने से शुरू होती है। यह आपसे बेहद मीठी-मीठी बातें करते हैं, सपनों की दुनिया की सैर कराते हैं। अगर आप गलती से भी उन्‍हें सच का सामना करवा दें तो वह अपने को किसी देव पुरुष की तरह सच्‍चा साबित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं (हालांकि वह इसमें सफल नहीं हो पाते)। उनके कुछ पिटे-पिटाए डायलॉग होते हैं जैसे मैं समझता हूं इस सोसाइटी को, बेहद गंदी मानसिकता है यहां के लोगों की, इनके तो दिमाग में ही गंदगी भरी है, देखिए मैं हर लड़की से बात नहीं करता, आप मुझे सबसे अलग लगीं, मैं इस सिस्‍टम का हिस्‍सा नहीं, मुझे आप औरों जैसा बिल्‍कुल न समझिए वगैरह-वगैरह।
इनकी मित्रता मेरी तो समझ में नहीं आती आखिर फोन पर बात करने और नेट पर चैटियाने से कोई मित्र कैसे हो सकता है वह भी उल जलूल बाते करने वाला। अगर मैं अपने मित्र के बारे में कहूं तो मेरी हर एक ड्रेस चुनने से लेकर जीवन साथी तक चुनने में उसका सहयोग रहा है। लात घूंसों और मुक्‍कों से स्‍वागत का रिवाज है। एक दूसरे के बिना एक कदम न बढाने की गैर हिम्‍मती भी जुडी़ हुई है। खैर जाकि बंदरिया, उही से नाचे वाले हाल यहां भी हैं। हमें इस दोस्‍ती का तजुर्बा ही नहीं।
कई बार तो आपके रॉन्ग नंबर से फोन आता है, किसी अनजाने का वह आपसे यह कहेगा कि मुझे आपसे दोस्‍ती करनी है बस, प्‍लीज आप मुझसे दोस्‍ती कर लीजिए। बडी़ ही मासूम होती है उनकी यह फीलिंग उन्‍हें आपकी उम्र, शक्‍ल और शादीशुदा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता उन्‍हें तो बस एक हसीना से बात करने का सुख मिलता है। बहुत बार आपके जानने वाले भी ऐसा ही करने का प्रयास करते हैं इनमें आपके सहकर्मी या सहकर्मी के दोस्‍त या दोस्‍त के दोस्‍त भी शामिल रहते हैं। जिन्‍हें अगर एक लड़की का नम्‍बर मिल जाए या ईमेल आईडी मिल जाए तो एक सेकेंड भी नहीं लगता दोस्‍ती का हाथ बढ़ाने में। अगर आप उनको जानती हैं तो वह अपने को महान साबित करेंगे। आपको बहन तक कह देंगे हालांकि उनके कुत्सित दिमाग का मामला ही कुछ और होता है। अगर दोस्‍ती का ऑफर देने वाला अनजान है तो किसी मुम्‍बइया हीरो की तरह प्रेम के देश का वासी होने का प्रमाण देंगे। बेहद समझदार, खुली और आधुनिक सोच वाला, आपको आदर्श का पाठ पढ़ाने वाला दुनिया की खूबसूरती से आपको परिचित कराने वाला। आप अगर इनकी दोस्‍ती से इनकार कर दें तो अक्‍सर इनकी ईगो को ठेस पहुंच जाती है।
अनजान हसीना के खयालों में डूबे रहने वाले ऐसे ही किसी दोस्‍त की ऑफर आपको भी मिल सकती है। तो सावधान मित्रता की ये ऑफर वैसे तो कभी भी मिलती रहती लेकिन चूंकि अगस्‍त माह का पहला सप्‍ताह है तो खास ऑफर मिल सकते हैं। वैसे आप सभी को थोड़ी देर से हैप्‍पी फ्रेंडशिप डे।

Sunday, July 26, 2009

ये इंसानी सांप

सांपों से बडा़ ही डर लगता था मुझको, उसके जहर से ज्‍यादा उसके शरीर के चकत्‍ते मेरे दिमाग की नसे सुलगाने लगते थे। गंदे चकत्‍ते, अजीब सी घिन आती उसकी लपलपाती जीभ से, उसकी आंखे हमेशा डर पैदा कर देता था मेरे अंदर। आज सोचती हूं तो लगता है शायद यह डर कम और घिन ज्‍यादा थी मुझे। रेंगते फिस्‍स फिस्‍स करते सांप। एक अजब बात यह भी थी कि दुनिया भर की भीड़ में वो बस मुझे ही दिखते थे। मुझे हर कहीं ये, कितनी भी भीड़ हो इस पर सबसे पहली नजर मेरी ही पड़ती थी। आपको यह जानकर घोर आश्‍चर्य होगा कि मैं जहां भी गई वहां पर सांप जरूर निकले और उन्‍हें देखा भी सबसे पहले मैंने ही। अब तो यह हाल हो गया था कि मैं जहां भी नई जगह रहने जाती मुझे यह इंतजार होता कि सांप कब निकलेगा।
मुझे अपनी पढा़ई के लिए कई जगहों पर रहना पडा़, कभी इस शहर और कभी उस शहर हर शहर में सांपों से मुलाकात हो जाती थी। धीरे-धीरे जिंदगी आगे बढती रहती, इन सांपों ने अपना रूप बदलना शुरू कर दिया था। पहले ये जमीन पर रेंगते रहते थे अब यह गली में, चौराहों पर, सड़कों में, बाजारों में, बसों में, टैम्‍पों में और दुकानों में मुझे मिलते ही रहते हैं। ये इंसानी सांप। इनके चेहरे चितकबरें नहीं थे बेहद खूबसूरत थे लेकिन आंखे वहीं कुटिल इनकी जुबान भी हमेशा लपलपाती रहती है। इनके फन हमेशा डसने को तैयार रहते हैं। इनके पास विष नहीं होता लेकिन जबान बडी़ ही विषैली होती है। यह विषैली जबान तब ज्‍यादा सक्रिय हो जाती है जब कोई लड़की सामने से गुजर जाती है। अक्‍सर ये बसों में सरसराते रहते हैं गंदे कीडों की तरह । सड़कों पर लहराते रहते हैं। बचपन के सांपों से कहीं ज्‍यादा घिनौने होते हैं ये मन अजीब सी गिजगिजाहट से भर जाता है लेकिन आप इतना जान ले अब सांपों से डर नहीं लगता क्‍योंकि अगर मैं और मेरी जैसी हर लड़की जानती है कि अगर इस दुनिया में जीना है तो इन सांपों के बीच से ही गुजरना होगा। लड़कियां नहीं डरती इन सांपों से बस घृणा करती हैं।

Friday, July 24, 2009

खो गया मेरा राह दिखाने वाला

अब नहीं आंखों में ख्‍वाब है आने वाला
चैन से सो रहा है मेरी नींद उडाने वाला

मेरी राहों में बिछाए रहता था पलकों को
आज गिरने पर भी न हाथ बढा़ने वाला

कल तलक मेरी उंगली पकड़ चलता था
मेरे आंगन के बीच दीवार उठाने वाला

चाय के पैसे बचा लेता है आफिस में
कुनबे का बोझ कांधों पर उठाने वाला

हर दर पर मंजिल का गुमान होता है
कहां खो है मेरा गया राह दिखाने वाला

मेरी ही यादों में लिपट कर रोया होगा
यूं अचानक पहलू से उठकर जाने वाला

अब तो ख्‍वाबों में दिखता है धुंधला सा
किस देश में जाकर बसा है जाने वाला

दिन भर हकीकत की धूप में जलता है
शाम को परियों की कहानी सुनाने वाला

वो मुसाफिर कुछ देर ठहरा था शहर में
अब कोई आए उसका जादू मिटाने वाला

मेरे गुनाहों की राह में आगे-आगे था जो
एक वो भी था मुझपर पत्‍थर उठाने वाला

क्‍या कहूं किस तरह जिंदगी ने लूटा है
मैं न था मायूसी का साथ निभाने वाला

हो सके तो एक बार लौट कर आ जाना
जर्रा जर्रा तुम्‍हे है मेरा हाल बताने वाला

दरवाजे पर टिकी रहती है मां की निगाहे
हर पल लगे है अबकि बेटा है आने वाला

क्‍या करु हारना सीखा नहीं तमन्‍ना ने
खुदा बनकर अब आए मुझे हराने वाला



Thursday, July 23, 2009

हौसला क्‍यों नहीं देता


गम अगर देता है तो हौसला क्‍यों नहीं देता
वो नाखुदा है तो मेरा फैसला क्‍यों नहीं देता
मेरी किस्मत की लकीरों में अगर नहीं है वो
दिल-ए-बर्बाद अब उसे भुला क्‍यों नहीं देता
हर फर्द लगा है मेरे जब्‍त को आजमाने में
कोई अजनबी आकर मुझे रुला क्‍यों नहीं देता
जिंदगी दे नहीं सकता तो मौत ही दे या रब
वो मेरे चाहत का कोई सिला क्‍यों नहीं देता
हम पर इल्‍जाम है जिंदगी से प्‍यार करने का
उसको गम है तो जहर पिला क्‍यों नहीं देता
मुसलसल देखता रहता है जाने क्‍यों खला में
भरी पलकों से अश्‍कों को गिरा क्‍यों नहीं देता
अजब नासमझ हो गया दिल इन दिनों मेरा
पूछता है तमन्‍ना से मिला क्‍यों नहीं देता

Sunday, July 19, 2009

ज़िन्दगी ...

कहते हैं
ज़िन्दगी उस कश्ती की मानिंद होती है जो समंदर के बीच में लाखों तूफानी लहरों के थपेडे खाने के बाद भी साहिल पर आने में कामयाब होती है ...

Sunday, June 28, 2009

तुम्‍हारी उर्मिला

तप रही है ये जमीन
इस बार मानसून नहीं आया अब तक
फट रहा है धरा का कलेजा
बारिश की चाह में
हाहाकार मच रहा है, चहुं ओर
बहुत दिन हो गए भीगे हुए
मुझे भी तो, तुम्‍हारे स्‍नेह में
उर्मी, उर्मी सुन रही हो तुम
सुन रही हूं, तुम्‍हारी पुकार को
आज बस तुम्‍हे ही सुन रही हूं मैं
तुम्‍हारी कही साकेत की लाइने
उर्मिला की पीडा़
कितनी गहनता से जाना था
समझा था तुमने उर्मिला की पीडा़ को
खंगाला था कवि के साथ
तुमने भी तो उसके अंर्तमन को
पर क्‍या कभी झांका तुमने
मेरे भी अंर्तमन में, जहां बस गए थे तुम
सुनाते सुनाते साकेत को कह जाते थे कितना कुछ
मेरी आंखों में झांकते हुए तुमने कही कितनी अनकही बातें
तुम्‍हारा राह रोककर खड़े हो जाना
रूठ जाना, खुद मान जाना
सब जान जाते थे बिन कहे
फिर क्‍यों नही जाना
अपनी उर्मी की पीडा़ को
जाने कब पा लिया था तुमने हर अधिकार
कब दिया था मैने तुम्‍हें यह अधिकार
कब मैं खो गई साकेत में
ओढ कर जामा उस नायिका का
एक न आने वाले पथिक की आस में
बन गई हूं तुम्‍हारी उर्मिला

ओ चंचला कभी मेरी गली भी आ

कभी-कभी हमारे घर की दीवारों की नसों में द्रुत गति से बहने वाली हे चपला, हे चंचला, तुम्‍हारे आने से जिंदगी रौशन हो जाती है, मेरे घर का कोना-कोना चहकता है, खुशियां बिखरती है, गीत गुनगुनाते हैं, ताल नृत्‍य करते हैं। तुम्‍हारा छम से आना और पल भर में मायूस कर चले जाना मुझे अच्‍छा नहीं लगता। आंखों के साथ पूरे शरीर से ही नमकीन पानी बह बह कर शरीर में पानी की कमी कर देता है। वैसे तुम्‍हारी यह चंचलता खेल खेलती है हमसे, जब हम उदास और निराश होते हैं। तुम्‍हारी आहट मात्र से खिल उठता हूं। इस तपती, जलती दुनिया में एक तुम्‍हारा ही तो आसरा है। तुम अपने साथ लाती हो गर्माहट से भरे ठंडी हवा के झोंके। जो मेरे लिए मरुस्‍थल में नदी के समान हैं। जानती हो, हमारा हर पल तुम्‍हारा इंतजार करता है, जाने क्‍यों तुम रूठ गई हो, जबकि हम मान लेते हैं तुम्‍हारी हर शर्त। दुनिया के गमों और जलते आसमां-धरती से बचकर मैं तुम्‍हारी छांव में कुछ पल सांस लेना चाहता हूं। मेरे जीवन में खुशी के दो पल देने के लिए ही आ जाओ। आ जाओं कि बिन तुम्‍हारे सब सुख यंत्र बेकार हैं।
कई रातों से हम सोए नहीं हैं, तुम्‍हारी अनुभूति थपक कर नींद की वादियों तक ले जाती है पर अचानक ही तुम्‍हारे न होने का एहसास दावानल की तरह अहसास दिला जाता है, हर कहीं आग ही आग बीच रात में बीच दोपहर का एहसास तड़पाता है हम अक्‍सर घबरा कर उठ कर बैठ जाते हैं। एक मीटर प्रति सेकेंड की गति कई बार कभी टैरेस कभी छत तो कभी कमरे में ही बौराया से फिरते हैं । गर्म बारिश भिंगोती है, सारी रात जागते है, हमारे रजों गम, जो तुम्‍हारे न होने के गम को और भी बढा देते हैं। उकता कर के हम भागते हैं खुले आसमां की चाह में, लेकिन दिन भर सूरज की आग में जली जमीन बन जाती है भट्टी और जल जाता है बदन इस ताप में। जब तुम आई थी तो मिले थे कुछ दरिया, जिनमें डूब कर कुछ देर मैं सुखानुभूति महसूस कर लेता हूं पर यकीन करो उनसे निकलते ही तुम्‍हारा इंतजार होता है। ओ चंचला कभी हमारी गली में भी आ, हर चेहरा खिल उठेगा, हर कोना रौशन होगा, तुम्‍हारे आंचल की हवा में कुछ पल सो सकूंगा, हमारे बच्‍चे भी सो सकेंगे जो तुम्‍हारे न होने के गम को और भी भयानक बना देते हैं। ठहरो और देखो तुम्‍हारे आने से मेरे घर में खुशी कैसे मचलती है। सुकून पसरता है। हे चंचला मैं तुम्‍हारी स्‍तुति करता हूं, तुम्‍हारे बढे़ हुए दामों को भी अदा करता हूं लेकिन तुम हो कि मेहरबान नहीं होती हूं। आओं कि घर का पंखा और कूलर तुम्‍हारी राह जोह रहा है। आओ कि बल्‍ब जलने को बेकरार है। तुम तो यूं आती हो मेरे घर जैसे ममता बनर्जी दिल्‍ली आती हैं। देखो तुम्‍हारा ऐसे विपत्ति की घडी़ में रूठना ठीक नहीं। मेरा दुखी मन आज कल तुम्‍हारी आने जाने की आदते देख कर एक ही गाना गाता है देर से आना जल्‍दी जाना ऐ साहिब ये ठीक नहीं।

Tuesday, June 23, 2009

लौट नहीं सकती मैं

पहाड़ों, झरनों और नदियों पर
रेगिस्‍तानों, मैदानों में
गलियों, सड़कों में
बर्फ में, पानी में
कहीं नहीं हैं
ये सब पार कर आई
यहां सब कहीं ढूंढ़ आई
तकियों के गिलाफों में
चादर की सिलवटों में
कपों के हेंडलों पर
इस कमरें की दीवार पर
पर भी मिट गए हैं।
उंगली की अंगूठी में
बालों के रंगों में
कहानियों में किस्‍से में
भी सुनाई देते
दूर तक टटोटलती हूं
चीख कर पुकारती हूं
पलकों तले दोहराती हूं
कुछ हाथ नहीं आता, कुछ साथ नहीं मिलता
जाने कहां खो गए सारे निशां
पिछले कदम के भी अंश नहीं हैं वहां
कोई रास्‍ता, कोई पगडंडी, कोई मंजिल
धूप ही मिल जाए मुझे
जिसमें जली हूं मै वो छांव भी बुझ चुकी है
तस्‍तीर धुंधली सी दिखती हैं
एक नक्‍श सा दिख रहा है
मेरे हाथ पर एक हाथ
दूर से आती एक आवाज पर
पर ये लम्स भी मुझ सा ही है
आवाज भी मेरी सी लगती है
ये मेरा ही चेहरा है
जो देख सकती हूं मैं
अजीब है मेरा सफर
क्‍या करूं?
लौट नहीं सकती
शापित हूं आगे बस आगे बढ़ने के लिए

Saturday, June 20, 2009

तुम्‍हारे गम




कई बार, बहुत बार
छिपाया है, दबाया है,
अपनी गलतियों को।
पेड़ों पर कूद-फांद करते जब,
फट जाती थी फ्रॉक,
चुपके से आकर,
कभी गेहूं की बडी़ ढेरी में
तो कभी किसी संदूक में सबसे नीचे,
छिपाया है दबाया है।
टूटे हुए कांच के बर्तनों को,
नई पेंसिल के ढेर से छिलकों को,
टेस्‍ट के पन्‍नों को,
दोस्‍तों की कॉमिक्स को,
जाने क्‍या कुछ छिपाकर,
छिपाया है दबाया है।
पगली सी मैं खो जाती थी
खेल खिलौनों में,
आज कल कोई खिलौना
बहला नहीं पाता मुझको,
जाने कैसे
मन की कई परतों में छिपाने के बाद भी
उभर आते हैं
वो अपराध जो मैंने किए,
वो गम जो तुमने दिए,
इनकों भी छिपाया है दबाया है।
कई बार, बार-बार
खुद से, सबसे
अचानक ही उभर आते हैं
मनों तले दबाने के बाद भी,
मन को पीडा़ देने के लिए।
किस ढेरी में दबाऊं इन्‍हें?
किस संदूक में छिपाऊं इन्‍हें?

Friday, June 19, 2009

खबर तो आप बनाइए जनाबे आली

चैनल पर अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा को मख्खी मारते हुए देखा जिसे देखने के बाद जाने क्‍यों लावारिश फिल्‍म का गाना अपना तो खून पानी जीना मरना बेमानी याद आने लगा। गाने की गुनगुनाहट अभी होंठो पर ही थी कि जाने क्‍यों बुश महोदय का शरापा आंखों में घूम गया। एक बार उन जूता चला था। हर फैशन की तरह ही भारतीयों ने यह फैशन भी खूब चलाया और अपने नेताओं को जूता मार-मार कर रिकॉर्ड बना दिया और इसी के साथ अचानक ही जूते की वल्‍यू भी बढ़ गई थी। अब आप सोचिए कि अगर पूर्व अमेरिकी राष्‍ट्रपति के साथ घटी घटना को भारतीयों ने इतनी अहमियत दी उस हिसाब से ओबामा तो अभी नए ताजे हैं। उन्‍होंने जिस घटना को अंजाम दिया उसे इस मंदी के दौर में ज्‍यादातर भारतीय रोज ही देते हैं लेकिन कहते हैं न कि घर की मुर्गी दाल बराबर। अब सोचिए इस खबर को चैनल्‍स कितनी देर दिखा पाए होंगे। बहुत कोशिश के बाद कुछ सेकेंड ही न। वहीं अगर मंदी के मारे भारतीयों द्वारा मख्‍खी मारने पर खबर बनाते तो पूरा एक पैकेज ही दिया जा सकता है। जैसे कि ये है फला कम्‍पनी के पूर्व एमडी आजकल ये दिन भर मख्खियां मारते रहते है बल्कि ये तो रिकॉर्ड बनाने की सोच रहे है। भारत में मख्‍खी मारने वाले विभिन्‍न क्षेत्रों में मिल जाएंगे। मंदी के बाद यही एक कारोबार है जिसमें बढोतरी हुई है।
आज हर क्षेत्र में हमारा मुल्‍क प्रगति कर रहा है खासकर फैशन के मामले में तो जल्‍द ही हमारे नेता भी ओबामा के नक्‍शेकदम पर चलते नजर आएंगे। बहुत जल्‍द कोई नेता आपको किसी चैनल पर मख्‍खी मारता हुआ नजर आ सकता है। यूं भी इस बार के आम चुनावों में काफी नेतागण बेकार हो चुके हैं। इस कहानी पर स्क्रिप्‍ट राइटिंग शूरू हो चुकी होगी। अब तो इस बात की होड़ मची होगी कि इसमें बाजी कौन मार पाता है। इस खबर को देख कर हमारे पडो़सी वर्मा जी जो अभी-अभी एक चैनल की सेवा से मुक्‍त कर दिए गए हैं। मेरे पास चले बोले इस मंदी में हम भी तो यही कर रहे हैं, हमारी खबर क्‍यों नहीं बनती। अब हम उन्‍हें क्‍या बताएं कि उनकी खबर क्‍यों नहीं बनती। हम तो बस यही गाना गुनगुना रहे हैं कि अपना तो खून पानी जीना मरना बेमानी खबरे तो आप बनाइए जनाबे आली।

Monday, June 1, 2009

भूलता नहीं मुझको



यादों के गलियारों में एक लालटेन जलाकर
मैंने ढूढे कुछ खोए हुए पल,
पर मैं तो भूल गई अतीत को
याद नहीं, कौन था, किसने राह दिखाई
याद नहीं, पिछली पंगडंडी का मोड़
कहां तक जाता था।
जुबां पर जो अब भी है ठहरा
यह स्‍वाद कब मिला था।
बहुत याद करने पर भी याद नहीं आता
वो चेहरा, जो बहुत देर तक
निहारा करता था मुझको
शायद वह छब्‍बीस तारीख थी, जब हम तुम
कुछ पल के साथी बने थे।
उस लड़की का नाम भी याद नहीं आता,
जिसे कहते थे हम रेल का इंजन
बहुत देर भरमू यादों के गलियारे में तो
कुछ याद आए शायद मुझको,
कि पैरों में यह चोट कब लगी थी,
आखिरी किताब कौन सी पढी़ थी,
तुमने आखिरी गुलाब कब दिया था,
ये चेहरा पहले कहां देखा है,
किस तंज पर हुई थी पीडा़,
और कौन शर्त मैनें हारी है,
ये ट्रॉफी कहां पर जीती थी,
कब मिली थी मैं खुद से आखिरी बार।
याद नहीं आ रही है मुझको,
अपनी पंसदीदा गजल की कुछ लाइने ।
तुम भी तो भूल गए
वो सारी बाते, जो कही थी तुमने मुझसे
तुम भी तो भूल जाते हो,
मेरी चूड़ियों की नाप,
तुम्‍हे याद रहता है किस फाइल में क्‍या रखा है,
पर याद नहीं आता वो नाम,
जिससे भेजा करते थे अपने प्रेमपत्र मुझे।
क्‍या याद है तुमको वो गीत जो गुनगुनाते हुए
गुजरा करते थे मेरे बगल से अक्‍सर,
शायद सब ही भूल जाते हैं
बहुत सी बातें
और मेरी तरह ही करते हैं भारी भूले
लेकिन जाने क्‍यों इन भारी भूलों के बीच
जो भूल गए हैं सब
वो याद आता है मुझको
तब सोचती हूं बडा़ अच्‍छा होता है
सब कुछ भूल जाना
क्‍योंकि जो याद आता है वह भूलता नहीं कभी
याद आता है मुझको
मां भी तो भूल जाती थी
मेरी गलतियों को, शरारतों को,
बहन भी भुला देती थी
कापी के पन्‍ने को फाड़ देना और
उसकी चित्रों को खराब कर देना
भाई भी भुला देता था मेरे पीटने को और डांटने को
डैडी भूल जाते थे मुझे स्‍कूल से लाना
मां जब भूल जाती बैग में टिफिन रखना
तो डैडी आते थे देने अपने स्‍कूटर से
ये भूलता नहीं मुझको
ये याद आता है मुझको



Sunday, May 24, 2009

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्‍या है


दुनिया में न जाने कितनी ही हस्तियों ने आंखे ने खोली, अपना-अपना हुनर आजाया कुछ लोग तो बड़ी शान से उभरे उनका फन मशहूर हुआ मगर ये फन देर तक नहीं रह सका। उन्‍हें वह बुलंदियां नहीं नसीब हो सकी जिनके वो हकदार थे। जबकि कुछ लोग ऐसे भी पैदा हुए जिन्‍होंने जब अपने महबूब फ़न को लोगों के सामने पेश किया तो लोगों हाथों हाथ कुबूल किया उन्‍हें वह शोहरत और बुलंदी नसीब हुई जिसका उन्‍हें अंदाजा भी नहीं था। हिंदुस्‍तान की फिल्‍मी दुनियां में भी हजारों ऐसे चहरे ने जन्‍म लिया जो कुछ वक्‍त तक अपने हुनर से लोगों को दीवाना बनाते रहे मगर ऐसा वक्‍त भी आया जब वह उनका उंदाजो अदा लोगों को अपना गरवेदह न बना सका। फिल्‍मी दुनिया में कुछ ऐसे नाम हैं जो आज तक अपने हुनर की बदौलत दुनिया से जाने के बाद भी अपने चाहने वालों के ख्‍वाबों खयालों में जिंदा और ताबिंदा हैं। भारतीय फिल्‍मी दुनिया में बहुत सारे गीतकारों ने अपनी कलम का जादू बिखेरा और कुछ मुद्दत तक लोगों के दिलों पर राज भी किया लेकिन उनकी एक बार की खामोशी के बाद दोबारा लोगों ने उनकी तरफ मुड़कर नहीं देखा।
फिल्‍मी दुनिया के बेहतरीन गीतकारों का जिक्र हो और साहिर लुधियानवी की बात न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं। गीतकारों में साहिए एक ऐसा नाम है जिसने कई दहाईयों तक फिल्‍मी दुनिया पर राज किया और जिनके नगमों से फिल्‍मी दुनिया आज भी गूंज रही है। दुनिया से अलविदा कहने के 33 सालों बाद भी उनके गीत लोगों की जुबान आज भी हैं चाहे वो बुजुर्ग हो या नौजवान उनके गीतों के तो सभी दीवाने हैं। साहिर का असली नाम अब्‍दुल हई था इनकी पैदाइश 8 मार्च 1921 में लुधियाना में हुई थी। पढाई के दौरान हुस्‍न और इश्‍क के कारण उन्‍हें कालेज से भी निकाल दिया गया। उनका दिल धड़काने वाली लड़की कोई आम लड़की नहीं बल्कि जानी मानी लेखिका अमृता प्रीतम थी। दिल के रास्‍ते में ठोकर खाने के बाद साहिर लाहौर रवाना हो गए जहां मुसीबतों ने उनका पीछा नहीं छोडा़। एक बार जब हालात ने सितम ढाना शुरु किया तो यह सिलसिला लम्‍बे अरसे तक चलता रहा। अपने हालात से घबरा कर साहिर ने हिंदुस्‍तान जाने का निर्णय लिया और उन्‍होंने अपना सफर शुरू कर जो मुम्‍बई पर आकर खत्‍म हुआ। यही से साहिर ने अपनी नई जिंदकी की शुरुआत की और शुरू हुआ कामयाबियों का दौर जो साहिर के रूकने के साथ भी नहीं रूका और अब तक अपनी कामयाबियों की रौशनी फैला रहा है। म्‍बे सितम ढाना शुरु किया ताक
साहिर को अपनी जिंदगी में बहुत नाम कमाना चाहते थे उनकी इसी महत्‍वाकांक्षा ने उन्‍हें फिल्‍मी दुनिया से जोड़ दिया। साहिर जानते थे यही वह स्‍टेज है जहां उन्‍हें दौलत शोहरत तो मिलेगी ही वह बहुत आसानी से लोगों तक अपनी बात भी पहुंचा पाएंगे। इतना कारगर कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता था। लोग यह भी कहते हैं कि साहिर ने यही सोच कर मुम्‍बई की ओर रुख किया था।1949 में साहिर की पहली फिल्‍म आजादी की राह पर आई जो बहुत कामयाब नहीं हो पाई लेकिन 1950 में आई नौजवान फिल्‍म के गीतों ने नौजवानों का चैन उडा लिया। ये गीत इतने मशहूर हुए कि आज भी लोगों को याद हैं। साहिर की कामयाबियों की दास्‍ता शुरू हो चुकी थी। साहिर ने जहां अपने गीतों पर लोगों को झूमने के लिए मजबूर किया वही फिल्‍मी दुनिया की मशहूर हस्तियों के साथ काम भी किया। साहिर और एसडी वर्मन की जोडी़ ने बाजी, जाल, टैक्‍सी ड्राइवर, मुनीम जी और प्‍यासा जैसी फिल्‍मों में अपने गीत संगीत के बेहतरीन तालमेल से धूम मचा दी। व़हीं रौशन के साथ मिलकर चित्रलेखा, बहूबेगम, दिल ही तो है, बरसात की रात, ताजमहल, बाबर और भीगी रात जैसी फिल्‍मों के जरिए अपने चाहनेवालों को दीवाना बना दिया। इसके अलावा उन्‍होंने ओपी नैय्‍यर, एन दत्‍ता, खैय्‍याम, जयदेव और कई दूसरे संगीतकारों के साथ काम किया और उनके साथ भी उन्‍होंने अपने चाहलने वालों को मायूस नहीं किया बल्कि उनकी कलम से मिलती है जिंदगी में मुहब्‍बबत कभी-कभी, नीले गगन के तले, छू लेने दो नाजुक होठों को, मैंने चांद और सितारों की तमन्‍ना की थी, मैं जब भी अकेली हुई हूं, दामन में दाग लगा बैठे, अभी ना जाओ छोड के दिल अभी भरा नहीं, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया और रात भी है कुछ भीगी-भीगी जैसे लगमें लिखे जिसने उनके दीवानों को झूमने पर मजबूर कर दिया। आज भी उनके गानों के अल्‍फाज लोगों की जबान पर आज भी आम हैं। मन्‍ना त िए मजबूर किया वहींीं
साहिर पर उनके नाम का बहुत असर पड़ा वो वाकई लफ्‍ज़ों के जादूगर थे। वर्ना और क्या वजह थी कि अपने वक्त के महान लोगों के बीच में भी साहिर ने वह पहचान हासिल की जिसे आज तक भुलाया नहीं जा सका है। वह पाकिस्तान से आकर फिल्मी दुनिया में इस क़दर छाए कि उनके आगे पहले से अपनी जगह बना चुके लोगों की चमक भी फीकी पड़ गयी। फिल्मी सनअत की मौजूद भीड़ में उनके जरिए लिखे गये नगमों ने वो धूम मचायी कि लोग दूसरों को भूल गये और साहिर के सेहर का शिकार हो कर उनके दीवाने बन बैठे। साहिर ने अपने तीस साला फिल्मी सफ़र में हजारों गीत और नगमें लिखे जिसने उन्हें मकबूलियत की बलंदियों पर पहुंचा दिया। अपने वक्त में साहिर ने जवां दिलों की धड़कनों की नसों और उनकी रगों में दौड़ रहे दर्द को बार-बार लिखा और उनकी यही खासियत नौजवानों में उन्हें एक अहम मकाम दिलाने में कामयाब रही। साहिर के कई गानों ने बहुत शोहरत हासिल की जो आज भी खास ओ आम की जबान से सुने जा सकते हैं। जिन्हें नाज़ हैं हिंद पर ( प्यासा), जाने वो कैसे लोग थे ( प्यासा), ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो (प्यासा), वह सुबह तो कभी आएगी (फिर सुबह होगी), ये देश है वीर जवानों का ( नया दौर), हुस्न हाजिर है ( लैला मजनू), तुझको पुकारे मेरा प्यार ( नील कमल), जो वादा किया है व निभाना पड़ेगा( ताजमहल) वगैरह वगैरह उनके निहायत ही मकबूल गीतों में शुमार किये जाते हैं। साहिर ने हालात और हादसात को अपनी शायरी में और अपनी गीतों में पूरी तरह पिरो दिया था। चुनाचे उन्होंने कभी तो हिंदुस्तान के लोगों को बेदार करने की कोशिश की तो कभी समाज के बुरे ऱस्‍मों रिवाज पर चोट की। उनकी यही खासियत थी कि जिसकी वजह से वह अपने चाहने वालों में इस कदर मक़बूल हुए लेकिन नशे के जद में ऐसे आए कि वो अपने चाहने वालों के दरम्यान ज्‍़यादा दिन तक नहीं रह सके। अदब और संगीत का ये अजीम संगम १९७६ में अपने चाहने वालों से जुदा हो गया।

मै, मेरी पत्नियां और व़ो


मारे गये गुलफाम, बेचारे करुणा जी पर कोई भी करुणा दिखाने को तैयार नहीं है, औरो की क्या बात करें जब बीवियों ने ही शिकंजा कस रखा है। सो अच्छा खासा ड्रामा चला। एक्शन, रोमांस, थ्रिल, डायलॉगबाजी जमकर हुई। लोगों ने खूब मजा लिया। करुणा जी तो अच्छे स्क्रिप्ट राइट रहे ही हैं लेकिन इस बार बहुत सोच समझकर स्क्रिप्ट लिख रहे थे क्योंकि उनकी बीवियां स्वंय ही सलाहकार के रूप में मौजूद जो थीं। मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़़ रखी थी। किसी धारावाहिक की भांति खबरों में हो रहे प्रगति पर पल-पल नजरें जमाए बैठे थे। यह नया धारावाहिक पूरी तरह हिट रहा। लेकिन बीच में फंसे मनमोहन की स्थिति तो देखने लायक है। कांग्रेस के कुछ नेता तो आर पार के ही मूड में थे। मगर मनमोहन की दिल करुण हो गया और आखिरी फैसला उन पर ही छोड़ दिया कि कहीं कोई बीवी नाराज न हो जाए नहीं तो तमिलनाडु में राजनीतिक भूचाल आ सकता था।
डीएमके प्रमुख ने मनमोहन को परेशान कर रखा था और करुणा की करूण हालत की जिम्‍मेदार उनकी पत्नियां उन्हें किसी भी तरीके से बख्शने को तैयार नहीं थी। करुणानिधि और उनकी पत्नियों से सजे इस ड्रामे के बीच मनमोहन सिंह वो बन गए थे। कई दिनों से सुर्खियों में चल रहे डीएमके प्रमुख यूं तो यूपीए सरकार में मंत्री पद के लिए सुर्खियों में बने रहे लेकिन वास्‍तव में उनकी समस्‍या मंत्री पद थी ही नहीं उनकी समस्‍या एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन-तीन थी। इन तीनो समस्‍याओं का एक ही नाम है मिसेज करुणानिधि। तीन शादियां करुणानिधी ने की हैं लेकिन परेशान मनमोहन सिंह हो गए हैं। उनका कुसूर इतना है कि जनता ने उन्‍हें बहुमत से यूपीए के प्रधानमंत्री के लिए चुना है और नेता जी यूपीए में महत्‍वपूर्ण अंग हैं।
नेता जी जिद पर अडे़ हुए थे कि उनको आठ मंत्रालय चाहिए ज‍बकि वो, मतलब मनमोहन सिंह उन्‍हें सात ही सीटे देने को ही तैयार हैं। करुणानिधी इस बात पर मानने ही वाले थे कि उनकी बीबियों ने तांडव मचाना शुरू कर दिया। पहली बीवी चाहती थी कि उनके बेटे को मंत्रालय मिले जबकि तीसरी पत्‍नी चाहती है कि उनकी बेटी को मंत्रालय मिले। जबकि फैमिली ड्रामें के अलावा पार्टी का सीन भी है। अब इन दोनों में से जो भी जाएगा वह अकेला तो जाएगा नहीं उनके साथ उनका एक हेल्‍पर भी मंत्रालय जाएगा। तो पत्नियों और बच्‍चों और पार्टी सदस्‍यों को संतुष्‍ट करने भर के मंत्रालय तो उनके पास होने ही चाहिए। लेकिन वो तो सात की जिद पर अड़ गए। पिछले कई दिनों से उहापोह की स्थिति समाप्‍त होने का नाम ही नहीं ले रही है यही कारण है कि प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण पर केवल 19 मंत्रियों ने ही शपथ ली। मनमोहन जी करुणा जी को मनाने में लगे थे इधर करुणा जी अपनी एजी, ओजी और सुनो जी में ताक धिना धिन कर रहे थे।
डीएमके प्रमुख के घर पर बीवी है कि मानती नामक कार्यक्रम चल रहा है। इसके लिए उनके घर पर एक बैठक आयोजित की गई जिसके बारे में पत्रकारों ने कहा कि बैठक की कोई ख़बर बाहर नहीं आ पाई। भई आप क्‍यों किसी के घर में ताक झाक कर रहे हैं। अपने घर की बात कोई बाहर वालों को क्‍यों बताएगा और वो भी आपको। बिना बताए तो आप लोगों ने इतना कुछ जाना और जनवाया, अब अगर आपको खुद ही कुछ बता दिया तो क्‍या हाल करेंगे ये तो आप भी नहीं जानते होंगे।

Sunday, May 17, 2009

युवा राज


व़ह कहता है कि उनके नाम के आगे गांधी लगा है इसमें उनकी कोई गलती नहीं है, वह यह भी कहता हैं कि सत्‍ता में रहने वाली सरकार सभी संस्‍थाओं का प्रयोग कहीं न कहीं अपने लाभ के लिए करती है इतना ही वह यह भी स्‍वीकार लेता हैं कि उसमे अभी प्रधानमंञी बनने की काबिलियत नहीं है, इन बातों को सुनकर लोग चौक गए कि इतनी बेबाक राय राजनीति में क्‍या यह भी कोई नया पैंतरा है। पुराने राजनैतिक यह सब सुनकर मन ही मन मुस्‍करा रहे थे। वे सभी यही सोच रहे थे कि अभी राज करने की नीति के बारे में इस नए-नए नेता बने गांधी को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा तो समझ आ जाएगा कि ये सब जनता को थोड़े ही बताया जाता है। दलितों के घर में खाना खाने वाले राजकुमार को ढोंगी बताया जाने लगा। लगातार देश भर दौरा कर रहे इस युवा को नामी खानदान का होने की वजह से भी आलोचनाओं का सामना करना पडा़ लेकिन इस सबके बावजूद उसे अपना मिशन दिखता रहा वह शांत होकर अपना काम करता रहा और बैठकर रणनीतिया बनाने और आरोप प्रत्‍यारोप करने के बजाय ज्‍यादा से ज्‍यादा जनता के बीच रहा। कांग्रेस का युवराज कहे जाने वाले राहुल ने अपने स्‍टार प्रचारक होने के दायित्‍व को खूब समझा और पूरी निष्‍ठा के साथ निभाया। वास्‍तव में निष्‍ठा का होना बहुत जरुरी है चाहे वह देश के प्रति हो या पार्टी के प्रति हो या स्‍वयं के प्रति। जो स्‍वयं के प्रति निष्‍ठावान है वह ही किसी और के प्रति हो सकता है।
आज सभी मान रहे हैं कि कांग्रेस की तस्‍वीर बदलने में राहुल गांधी का हाथ है पर यहां दिलाना जरुरी है कि यह सब आज का काम नहीं है। जब सभी नेता आने वाले चुनाव की बाते कर रहे थे तब यह कॉलेजों का दौरा कर रहा था। युवाओं से मिलरहे थे अपने कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे। युवा कांग्रेस में चुनाव की रणनी‍ति तैयार कर रहे थे। अपने क्षेञ के दौरों के दौरान दलितो के घर रुकते थे और वहीं भोजन करते थे। संसद में पहली बार आवाज उठाते हैं तो कलावती जैसी गरीब महिला के मुद्दे पर।
अपने पिता की तरह बाते करने वाले राहुल अपने पिता की तरह ही बैरियर को तोड़कर जनता से मिलते हैं, पिता की तरह ही विरोधी पार्टियों की कमिया निकालने के बजाए सिस्‍टम को सुधारने की बाते करते हैं। उनकी रैली के दौरान अगर कोई गिर गया खुद उसे उठाने जाते हैं और सुरक्षार्मियों को हड़का भी देते हैं। सफेद कुर्ते पायजामे में नजर आने वाला यह नौजवान राजनैतिक पारी खेलना चाहता है लेकिन पूरी तरह से तप जाने के बाद। व़ह कोई पद सम्‍भालना चाहते है लेकिन देश की हर छोटी बडी़ समस्‍या को जान लेने के बाद, राजनीति का अनुभव लेने के बाद ही राजनैतिक पदों पर दावेदारी चाहते हैं यानि कि अपने योग्‍यता के बल पर न की गांधी उपनाम की एवज में। राहुल किसी जाति और सम्‍प्रदाय की बात नहीं करते, किसी सम्‍प्रदाय की बात नहीं करते वह बात करते हैं देश के आम नागरिक की, वह बात करते हैं व्‍यवस्‍था में लग चुके कीडो़ की।
देश भर में ताबडतोड़ 100 ज्‍यादा जनसभाएं करने वाले राहुल ने अपनी ईमानदारी और साफगोई से लोगों का दिल जीत लिया। कल तक जो विरोधी राहुल को बच्‍चा मान रहे थे वो गच्‍चा खाने के बाद मुंह बंद किए बैठे हैं। इस युवा गांधी में देश आने वाले भविष्‍य की तस्‍वीर देख रहा है। एक बात जो इन चुनावों में खुलकर सामने आई वह यह है कि लोग घुटे हुए नेताओं और उनके घटिया राजनैतिक पैतरों से छुटकारा पाना चाहते है।
आज की युवा पीढी सोचती है कि युवा भारत के सपने को पूरा करने के लिए यूथ फैक्‍टर की जरुरत है और यही कारण है युवाओं ने राहुल और उनकी युवा चौकडी़ को बिना किसी भ्रम के साथ मौका दिया। राहुल के आस पास दिखने वाले चेहरों की बात करें तो उसमें युवाओं की संख्‍या ज्‍यादा माञा में मिलेगी। कांग्रेस ने टिकट बांटने के मामले में भी युवाओं को तरजीह दी। जब सभी राजनेता और राजनैतिक दल ओछी बाते कर रहे थे मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के हथखंडे़ अपना रहे थे और दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे थे ऐसे में राहुल गांधी विकास की बात कर रहे थे। हर दल का नेता अपने को प्रधानमंञी पद का दावेदार बनाने में व्‍यस्‍त था तब मीडिया के बार-बार उकसाने के बावजूद राहुल ने मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंञी पद का उम्‍मीदार बताया। उन्‍होंने कहा कि व़ो देश के लिए काम करना चाहते है। उनकी यही बात लोगों के दिल को छू गई कि जोश से भरा यह युवक जिसके नाम के साथ गांधी लगा है होश और अनुभव को साथ लेकर चलना चाहता है । जनता एक स्थिर सरकार चाहती थी और उसे कांग्रेस से बेहतर विकल्‍प हाथ नहीं आया। कांग्रेस एक ऐसी पार्टी के रुप में उनके सामने आई जो युवाओं के हाथ में देश की कमान देना चाहती है।
राहुल गांधी मीडिया की नजरों में पहली बार तब आए थे जब सोनिया गांधी ने अपने पति की सीट अमेठी से पर्चा भरा था। तब मीडिया से अपरिचित सहमे से राहुल अपनी मां के साथ हौसला बढा़ने के लिए पीछे खडे़ थे और आज की बात करें तो बस एक तस्‍वीर का जिक्र होना चाहिए जो अभी तक मीडिया द्वारा रिलीज की हुई राहुल की आखिरी तस्‍वीर है। यह तस्‍वीर है अमेठी प्रमाण पञ लेने जाते हुए चेहरे पर आत्‍मविश्‍वास से भरी मुस्‍कुराहट और बहन प्रियंका को थामें हुए राहुल भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यहां पर राहुल ने प्रियंका का सहारा लिया हुआ नहीं है बल्कि वह उनके साथ उन्‍हें भीड़ से बचाते हुए दिख रहे हैं। अपने परिवार के साथ ही देश को भी यह संदेश दे रहे हैं कि अब उनके कांधे इतने मजबूत हो गए हैं कि वह जिम्‍मेदारियों का निर्वाह कर सकते हैं। बस देश को समझना है कि जिम्‍मेदारिया का मतलब सीधे प्रधानमंञी पद नहीं है।

Saturday, May 9, 2009

तो क्‍या बांध न टूट जाएगा

कई दिनों से
मैंने तुम्‍हें फोन नहीं किया
बात नहीं की
कुछ घबराई हूं
डर जाती हूं
भरे गले से कैसे बात करुंगी
कैसे दे पाऊंगी हिसाब
ठोकरों का
जानती हूं बहुत सहनशील हो
धरा की तरह
लेकिन मैंने देखा है
तुमको
आंसुओं के साथ मेरी
चोटों पर मरहम लगाते हुए
तो कैसे कह दूं
बस के पीछे भागते भागते
लग गया है घाव गहरा
हर पल जिंदगी से जूझती मैं
हर मुश्किल से डटकर लड़ती मैं
कमजोर तो नहीं
तुम्‍हारी एक आवाज पर
छटपटा उठता है
दिल सहमें बच्‍चे की तरह
लाख कोशिशे करती हूं
तुमसे छुपाने को अपने दुख
पर तुम तो जानती हो मां
एक बार पूछोगी
क्‍या हुआ
तो क्‍या बांध न टूट जाएगा

ek shuruaat

main ne jeene ki tamanna to nahin ki thi aye dost

phir kion tere hathoon mein khanjar nikla