Sunday, May 24, 2009

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्‍या है


दुनिया में न जाने कितनी ही हस्तियों ने आंखे ने खोली, अपना-अपना हुनर आजाया कुछ लोग तो बड़ी शान से उभरे उनका फन मशहूर हुआ मगर ये फन देर तक नहीं रह सका। उन्‍हें वह बुलंदियां नहीं नसीब हो सकी जिनके वो हकदार थे। जबकि कुछ लोग ऐसे भी पैदा हुए जिन्‍होंने जब अपने महबूब फ़न को लोगों के सामने पेश किया तो लोगों हाथों हाथ कुबूल किया उन्‍हें वह शोहरत और बुलंदी नसीब हुई जिसका उन्‍हें अंदाजा भी नहीं था। हिंदुस्‍तान की फिल्‍मी दुनियां में भी हजारों ऐसे चहरे ने जन्‍म लिया जो कुछ वक्‍त तक अपने हुनर से लोगों को दीवाना बनाते रहे मगर ऐसा वक्‍त भी आया जब वह उनका उंदाजो अदा लोगों को अपना गरवेदह न बना सका। फिल्‍मी दुनिया में कुछ ऐसे नाम हैं जो आज तक अपने हुनर की बदौलत दुनिया से जाने के बाद भी अपने चाहने वालों के ख्‍वाबों खयालों में जिंदा और ताबिंदा हैं। भारतीय फिल्‍मी दुनिया में बहुत सारे गीतकारों ने अपनी कलम का जादू बिखेरा और कुछ मुद्दत तक लोगों के दिलों पर राज भी किया लेकिन उनकी एक बार की खामोशी के बाद दोबारा लोगों ने उनकी तरफ मुड़कर नहीं देखा।
फिल्‍मी दुनिया के बेहतरीन गीतकारों का जिक्र हो और साहिर लुधियानवी की बात न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं। गीतकारों में साहिए एक ऐसा नाम है जिसने कई दहाईयों तक फिल्‍मी दुनिया पर राज किया और जिनके नगमों से फिल्‍मी दुनिया आज भी गूंज रही है। दुनिया से अलविदा कहने के 33 सालों बाद भी उनके गीत लोगों की जुबान आज भी हैं चाहे वो बुजुर्ग हो या नौजवान उनके गीतों के तो सभी दीवाने हैं। साहिर का असली नाम अब्‍दुल हई था इनकी पैदाइश 8 मार्च 1921 में लुधियाना में हुई थी। पढाई के दौरान हुस्‍न और इश्‍क के कारण उन्‍हें कालेज से भी निकाल दिया गया। उनका दिल धड़काने वाली लड़की कोई आम लड़की नहीं बल्कि जानी मानी लेखिका अमृता प्रीतम थी। दिल के रास्‍ते में ठोकर खाने के बाद साहिर लाहौर रवाना हो गए जहां मुसीबतों ने उनका पीछा नहीं छोडा़। एक बार जब हालात ने सितम ढाना शुरु किया तो यह सिलसिला लम्‍बे अरसे तक चलता रहा। अपने हालात से घबरा कर साहिर ने हिंदुस्‍तान जाने का निर्णय लिया और उन्‍होंने अपना सफर शुरू कर जो मुम्‍बई पर आकर खत्‍म हुआ। यही से साहिर ने अपनी नई जिंदकी की शुरुआत की और शुरू हुआ कामयाबियों का दौर जो साहिर के रूकने के साथ भी नहीं रूका और अब तक अपनी कामयाबियों की रौशनी फैला रहा है। म्‍बे सितम ढाना शुरु किया ताक
साहिर को अपनी जिंदगी में बहुत नाम कमाना चाहते थे उनकी इसी महत्‍वाकांक्षा ने उन्‍हें फिल्‍मी दुनिया से जोड़ दिया। साहिर जानते थे यही वह स्‍टेज है जहां उन्‍हें दौलत शोहरत तो मिलेगी ही वह बहुत आसानी से लोगों तक अपनी बात भी पहुंचा पाएंगे। इतना कारगर कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता था। लोग यह भी कहते हैं कि साहिर ने यही सोच कर मुम्‍बई की ओर रुख किया था।1949 में साहिर की पहली फिल्‍म आजादी की राह पर आई जो बहुत कामयाब नहीं हो पाई लेकिन 1950 में आई नौजवान फिल्‍म के गीतों ने नौजवानों का चैन उडा लिया। ये गीत इतने मशहूर हुए कि आज भी लोगों को याद हैं। साहिर की कामयाबियों की दास्‍ता शुरू हो चुकी थी। साहिर ने जहां अपने गीतों पर लोगों को झूमने के लिए मजबूर किया वही फिल्‍मी दुनिया की मशहूर हस्तियों के साथ काम भी किया। साहिर और एसडी वर्मन की जोडी़ ने बाजी, जाल, टैक्‍सी ड्राइवर, मुनीम जी और प्‍यासा जैसी फिल्‍मों में अपने गीत संगीत के बेहतरीन तालमेल से धूम मचा दी। व़हीं रौशन के साथ मिलकर चित्रलेखा, बहूबेगम, दिल ही तो है, बरसात की रात, ताजमहल, बाबर और भीगी रात जैसी फिल्‍मों के जरिए अपने चाहनेवालों को दीवाना बना दिया। इसके अलावा उन्‍होंने ओपी नैय्‍यर, एन दत्‍ता, खैय्‍याम, जयदेव और कई दूसरे संगीतकारों के साथ काम किया और उनके साथ भी उन्‍होंने अपने चाहलने वालों को मायूस नहीं किया बल्कि उनकी कलम से मिलती है जिंदगी में मुहब्‍बबत कभी-कभी, नीले गगन के तले, छू लेने दो नाजुक होठों को, मैंने चांद और सितारों की तमन्‍ना की थी, मैं जब भी अकेली हुई हूं, दामन में दाग लगा बैठे, अभी ना जाओ छोड के दिल अभी भरा नहीं, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया और रात भी है कुछ भीगी-भीगी जैसे लगमें लिखे जिसने उनके दीवानों को झूमने पर मजबूर कर दिया। आज भी उनके गानों के अल्‍फाज लोगों की जबान पर आज भी आम हैं। मन्‍ना त िए मजबूर किया वहींीं
साहिर पर उनके नाम का बहुत असर पड़ा वो वाकई लफ्‍ज़ों के जादूगर थे। वर्ना और क्या वजह थी कि अपने वक्त के महान लोगों के बीच में भी साहिर ने वह पहचान हासिल की जिसे आज तक भुलाया नहीं जा सका है। वह पाकिस्तान से आकर फिल्मी दुनिया में इस क़दर छाए कि उनके आगे पहले से अपनी जगह बना चुके लोगों की चमक भी फीकी पड़ गयी। फिल्मी सनअत की मौजूद भीड़ में उनके जरिए लिखे गये नगमों ने वो धूम मचायी कि लोग दूसरों को भूल गये और साहिर के सेहर का शिकार हो कर उनके दीवाने बन बैठे। साहिर ने अपने तीस साला फिल्मी सफ़र में हजारों गीत और नगमें लिखे जिसने उन्हें मकबूलियत की बलंदियों पर पहुंचा दिया। अपने वक्त में साहिर ने जवां दिलों की धड़कनों की नसों और उनकी रगों में दौड़ रहे दर्द को बार-बार लिखा और उनकी यही खासियत नौजवानों में उन्हें एक अहम मकाम दिलाने में कामयाब रही। साहिर के कई गानों ने बहुत शोहरत हासिल की जो आज भी खास ओ आम की जबान से सुने जा सकते हैं। जिन्हें नाज़ हैं हिंद पर ( प्यासा), जाने वो कैसे लोग थे ( प्यासा), ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो (प्यासा), वह सुबह तो कभी आएगी (फिर सुबह होगी), ये देश है वीर जवानों का ( नया दौर), हुस्न हाजिर है ( लैला मजनू), तुझको पुकारे मेरा प्यार ( नील कमल), जो वादा किया है व निभाना पड़ेगा( ताजमहल) वगैरह वगैरह उनके निहायत ही मकबूल गीतों में शुमार किये जाते हैं। साहिर ने हालात और हादसात को अपनी शायरी में और अपनी गीतों में पूरी तरह पिरो दिया था। चुनाचे उन्होंने कभी तो हिंदुस्तान के लोगों को बेदार करने की कोशिश की तो कभी समाज के बुरे ऱस्‍मों रिवाज पर चोट की। उनकी यही खासियत थी कि जिसकी वजह से वह अपने चाहने वालों में इस कदर मक़बूल हुए लेकिन नशे के जद में ऐसे आए कि वो अपने चाहने वालों के दरम्यान ज्‍़यादा दिन तक नहीं रह सके। अदब और संगीत का ये अजीम संगम १९७६ में अपने चाहने वालों से जुदा हो गया।

मै, मेरी पत्नियां और व़ो


मारे गये गुलफाम, बेचारे करुणा जी पर कोई भी करुणा दिखाने को तैयार नहीं है, औरो की क्या बात करें जब बीवियों ने ही शिकंजा कस रखा है। सो अच्छा खासा ड्रामा चला। एक्शन, रोमांस, थ्रिल, डायलॉगबाजी जमकर हुई। लोगों ने खूब मजा लिया। करुणा जी तो अच्छे स्क्रिप्ट राइट रहे ही हैं लेकिन इस बार बहुत सोच समझकर स्क्रिप्ट लिख रहे थे क्योंकि उनकी बीवियां स्वंय ही सलाहकार के रूप में मौजूद जो थीं। मीडिया ने भी कोई कसर नहीं छोड़़ रखी थी। किसी धारावाहिक की भांति खबरों में हो रहे प्रगति पर पल-पल नजरें जमाए बैठे थे। यह नया धारावाहिक पूरी तरह हिट रहा। लेकिन बीच में फंसे मनमोहन की स्थिति तो देखने लायक है। कांग्रेस के कुछ नेता तो आर पार के ही मूड में थे। मगर मनमोहन की दिल करुण हो गया और आखिरी फैसला उन पर ही छोड़ दिया कि कहीं कोई बीवी नाराज न हो जाए नहीं तो तमिलनाडु में राजनीतिक भूचाल आ सकता था।
डीएमके प्रमुख ने मनमोहन को परेशान कर रखा था और करुणा की करूण हालत की जिम्‍मेदार उनकी पत्नियां उन्हें किसी भी तरीके से बख्शने को तैयार नहीं थी। करुणानिधि और उनकी पत्नियों से सजे इस ड्रामे के बीच मनमोहन सिंह वो बन गए थे। कई दिनों से सुर्खियों में चल रहे डीएमके प्रमुख यूं तो यूपीए सरकार में मंत्री पद के लिए सुर्खियों में बने रहे लेकिन वास्‍तव में उनकी समस्‍या मंत्री पद थी ही नहीं उनकी समस्‍या एक नहीं, दो नहीं, बल्कि तीन-तीन थी। इन तीनो समस्‍याओं का एक ही नाम है मिसेज करुणानिधि। तीन शादियां करुणानिधी ने की हैं लेकिन परेशान मनमोहन सिंह हो गए हैं। उनका कुसूर इतना है कि जनता ने उन्‍हें बहुमत से यूपीए के प्रधानमंत्री के लिए चुना है और नेता जी यूपीए में महत्‍वपूर्ण अंग हैं।
नेता जी जिद पर अडे़ हुए थे कि उनको आठ मंत्रालय चाहिए ज‍बकि वो, मतलब मनमोहन सिंह उन्‍हें सात ही सीटे देने को ही तैयार हैं। करुणानिधी इस बात पर मानने ही वाले थे कि उनकी बीबियों ने तांडव मचाना शुरू कर दिया। पहली बीवी चाहती थी कि उनके बेटे को मंत्रालय मिले जबकि तीसरी पत्‍नी चाहती है कि उनकी बेटी को मंत्रालय मिले। जबकि फैमिली ड्रामें के अलावा पार्टी का सीन भी है। अब इन दोनों में से जो भी जाएगा वह अकेला तो जाएगा नहीं उनके साथ उनका एक हेल्‍पर भी मंत्रालय जाएगा। तो पत्नियों और बच्‍चों और पार्टी सदस्‍यों को संतुष्‍ट करने भर के मंत्रालय तो उनके पास होने ही चाहिए। लेकिन वो तो सात की जिद पर अड़ गए। पिछले कई दिनों से उहापोह की स्थिति समाप्‍त होने का नाम ही नहीं ले रही है यही कारण है कि प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण पर केवल 19 मंत्रियों ने ही शपथ ली। मनमोहन जी करुणा जी को मनाने में लगे थे इधर करुणा जी अपनी एजी, ओजी और सुनो जी में ताक धिना धिन कर रहे थे।
डीएमके प्रमुख के घर पर बीवी है कि मानती नामक कार्यक्रम चल रहा है। इसके लिए उनके घर पर एक बैठक आयोजित की गई जिसके बारे में पत्रकारों ने कहा कि बैठक की कोई ख़बर बाहर नहीं आ पाई। भई आप क्‍यों किसी के घर में ताक झाक कर रहे हैं। अपने घर की बात कोई बाहर वालों को क्‍यों बताएगा और वो भी आपको। बिना बताए तो आप लोगों ने इतना कुछ जाना और जनवाया, अब अगर आपको खुद ही कुछ बता दिया तो क्‍या हाल करेंगे ये तो आप भी नहीं जानते होंगे।

Sunday, May 17, 2009

युवा राज


व़ह कहता है कि उनके नाम के आगे गांधी लगा है इसमें उनकी कोई गलती नहीं है, वह यह भी कहता हैं कि सत्‍ता में रहने वाली सरकार सभी संस्‍थाओं का प्रयोग कहीं न कहीं अपने लाभ के लिए करती है इतना ही वह यह भी स्‍वीकार लेता हैं कि उसमे अभी प्रधानमंञी बनने की काबिलियत नहीं है, इन बातों को सुनकर लोग चौक गए कि इतनी बेबाक राय राजनीति में क्‍या यह भी कोई नया पैंतरा है। पुराने राजनैतिक यह सब सुनकर मन ही मन मुस्‍करा रहे थे। वे सभी यही सोच रहे थे कि अभी राज करने की नीति के बारे में इस नए-नए नेता बने गांधी को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा तो समझ आ जाएगा कि ये सब जनता को थोड़े ही बताया जाता है। दलितों के घर में खाना खाने वाले राजकुमार को ढोंगी बताया जाने लगा। लगातार देश भर दौरा कर रहे इस युवा को नामी खानदान का होने की वजह से भी आलोचनाओं का सामना करना पडा़ लेकिन इस सबके बावजूद उसे अपना मिशन दिखता रहा वह शांत होकर अपना काम करता रहा और बैठकर रणनीतिया बनाने और आरोप प्रत्‍यारोप करने के बजाय ज्‍यादा से ज्‍यादा जनता के बीच रहा। कांग्रेस का युवराज कहे जाने वाले राहुल ने अपने स्‍टार प्रचारक होने के दायित्‍व को खूब समझा और पूरी निष्‍ठा के साथ निभाया। वास्‍तव में निष्‍ठा का होना बहुत जरुरी है चाहे वह देश के प्रति हो या पार्टी के प्रति हो या स्‍वयं के प्रति। जो स्‍वयं के प्रति निष्‍ठावान है वह ही किसी और के प्रति हो सकता है।
आज सभी मान रहे हैं कि कांग्रेस की तस्‍वीर बदलने में राहुल गांधी का हाथ है पर यहां दिलाना जरुरी है कि यह सब आज का काम नहीं है। जब सभी नेता आने वाले चुनाव की बाते कर रहे थे तब यह कॉलेजों का दौरा कर रहा था। युवाओं से मिलरहे थे अपने कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे। युवा कांग्रेस में चुनाव की रणनी‍ति तैयार कर रहे थे। अपने क्षेञ के दौरों के दौरान दलितो के घर रुकते थे और वहीं भोजन करते थे। संसद में पहली बार आवाज उठाते हैं तो कलावती जैसी गरीब महिला के मुद्दे पर।
अपने पिता की तरह बाते करने वाले राहुल अपने पिता की तरह ही बैरियर को तोड़कर जनता से मिलते हैं, पिता की तरह ही विरोधी पार्टियों की कमिया निकालने के बजाए सिस्‍टम को सुधारने की बाते करते हैं। उनकी रैली के दौरान अगर कोई गिर गया खुद उसे उठाने जाते हैं और सुरक्षार्मियों को हड़का भी देते हैं। सफेद कुर्ते पायजामे में नजर आने वाला यह नौजवान राजनैतिक पारी खेलना चाहता है लेकिन पूरी तरह से तप जाने के बाद। व़ह कोई पद सम्‍भालना चाहते है लेकिन देश की हर छोटी बडी़ समस्‍या को जान लेने के बाद, राजनीति का अनुभव लेने के बाद ही राजनैतिक पदों पर दावेदारी चाहते हैं यानि कि अपने योग्‍यता के बल पर न की गांधी उपनाम की एवज में। राहुल किसी जाति और सम्‍प्रदाय की बात नहीं करते, किसी सम्‍प्रदाय की बात नहीं करते वह बात करते हैं देश के आम नागरिक की, वह बात करते हैं व्‍यवस्‍था में लग चुके कीडो़ की।
देश भर में ताबडतोड़ 100 ज्‍यादा जनसभाएं करने वाले राहुल ने अपनी ईमानदारी और साफगोई से लोगों का दिल जीत लिया। कल तक जो विरोधी राहुल को बच्‍चा मान रहे थे वो गच्‍चा खाने के बाद मुंह बंद किए बैठे हैं। इस युवा गांधी में देश आने वाले भविष्‍य की तस्‍वीर देख रहा है। एक बात जो इन चुनावों में खुलकर सामने आई वह यह है कि लोग घुटे हुए नेताओं और उनके घटिया राजनैतिक पैतरों से छुटकारा पाना चाहते है।
आज की युवा पीढी सोचती है कि युवा भारत के सपने को पूरा करने के लिए यूथ फैक्‍टर की जरुरत है और यही कारण है युवाओं ने राहुल और उनकी युवा चौकडी़ को बिना किसी भ्रम के साथ मौका दिया। राहुल के आस पास दिखने वाले चेहरों की बात करें तो उसमें युवाओं की संख्‍या ज्‍यादा माञा में मिलेगी। कांग्रेस ने टिकट बांटने के मामले में भी युवाओं को तरजीह दी। जब सभी राजनेता और राजनैतिक दल ओछी बाते कर रहे थे मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के हथखंडे़ अपना रहे थे और दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे थे ऐसे में राहुल गांधी विकास की बात कर रहे थे। हर दल का नेता अपने को प्रधानमंञी पद का दावेदार बनाने में व्‍यस्‍त था तब मीडिया के बार-बार उकसाने के बावजूद राहुल ने मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंञी पद का उम्‍मीदार बताया। उन्‍होंने कहा कि व़ो देश के लिए काम करना चाहते है। उनकी यही बात लोगों के दिल को छू गई कि जोश से भरा यह युवक जिसके नाम के साथ गांधी लगा है होश और अनुभव को साथ लेकर चलना चाहता है । जनता एक स्थिर सरकार चाहती थी और उसे कांग्रेस से बेहतर विकल्‍प हाथ नहीं आया। कांग्रेस एक ऐसी पार्टी के रुप में उनके सामने आई जो युवाओं के हाथ में देश की कमान देना चाहती है।
राहुल गांधी मीडिया की नजरों में पहली बार तब आए थे जब सोनिया गांधी ने अपने पति की सीट अमेठी से पर्चा भरा था। तब मीडिया से अपरिचित सहमे से राहुल अपनी मां के साथ हौसला बढा़ने के लिए पीछे खडे़ थे और आज की बात करें तो बस एक तस्‍वीर का जिक्र होना चाहिए जो अभी तक मीडिया द्वारा रिलीज की हुई राहुल की आखिरी तस्‍वीर है। यह तस्‍वीर है अमेठी प्रमाण पञ लेने जाते हुए चेहरे पर आत्‍मविश्‍वास से भरी मुस्‍कुराहट और बहन प्रियंका को थामें हुए राहुल भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यहां पर राहुल ने प्रियंका का सहारा लिया हुआ नहीं है बल्कि वह उनके साथ उन्‍हें भीड़ से बचाते हुए दिख रहे हैं। अपने परिवार के साथ ही देश को भी यह संदेश दे रहे हैं कि अब उनके कांधे इतने मजबूत हो गए हैं कि वह जिम्‍मेदारियों का निर्वाह कर सकते हैं। बस देश को समझना है कि जिम्‍मेदारिया का मतलब सीधे प्रधानमंञी पद नहीं है।

Saturday, May 9, 2009

तो क्‍या बांध न टूट जाएगा

कई दिनों से
मैंने तुम्‍हें फोन नहीं किया
बात नहीं की
कुछ घबराई हूं
डर जाती हूं
भरे गले से कैसे बात करुंगी
कैसे दे पाऊंगी हिसाब
ठोकरों का
जानती हूं बहुत सहनशील हो
धरा की तरह
लेकिन मैंने देखा है
तुमको
आंसुओं के साथ मेरी
चोटों पर मरहम लगाते हुए
तो कैसे कह दूं
बस के पीछे भागते भागते
लग गया है घाव गहरा
हर पल जिंदगी से जूझती मैं
हर मुश्किल से डटकर लड़ती मैं
कमजोर तो नहीं
तुम्‍हारी एक आवाज पर
छटपटा उठता है
दिल सहमें बच्‍चे की तरह
लाख कोशिशे करती हूं
तुमसे छुपाने को अपने दुख
पर तुम तो जानती हो मां
एक बार पूछोगी
क्‍या हुआ
तो क्‍या बांध न टूट जाएगा

ek shuruaat

main ne jeene ki tamanna to nahin ki thi aye dost

phir kion tere hathoon mein khanjar nikla