Monday, August 17, 2009

समयांतर की वृद्धि

क्‍या तुमने देखा है
कलियों को फूल बनते हुए,
अपनो को पराए होते,
बीज का पौधा, पौधे का पेड,
बच्‍ची को लड़की, लड़की के दुल्‍हन
बनने का सफर,
ढूंढना मुश्किल है,
समयांतर की वृद्धि को
मुझे दिख नहीं रहा,
वह दिन, वह पल, वह क्षण
जब अलग हो गए
मेरे दुख
तुम्‍हारे सुखों से
पहले तो एक जैसे ही थे,
मेरे तुम्‍हारे सुख-दु्ख।

Sunday, August 9, 2009

अफसुर्दा होती नहीं हूं मैं।



बीज कोई अब नया बोती नहीं हूं मैं,
इ‍सलिए अफसुर्दा होती नहीं हूं मैं।
मिल न जाए कोई नया सूरज मुझे
इस डर से रात भर सोती नहीं हूं मैं।
मेरे दर्द उसकी आंखों से छलकते हैं,
मां जब सामने हो, रोती नहीं हूं मैं
एक दुआ को ओढ़ रखा है सिर पर,
मुश्किलों में हौसला खोती नहीं हूं मैं।
दर्द कोई भी हो, हंसकर उडा़ दिया
बेकार के लम्‍हों को ढोती नहीं हूं मैं।
मेरी आदतें जमाने का चलन न सही,
मैली ही चूनर सही, धोती नहीं हूं मैं।

Friday, August 7, 2009

किसी राह में किसी मोड़ पर...




जाने क्‍यों लगता है,
फिर मिल जाओगे मुझे
किसी राह पर किसी मोड़ पर,
जाने क्‍यों अजनबी शहर की
हर एक शय में,
बेबस निगाहें ढूंढ़ती हैं
तुम्‍हारी सी कोई पहचान,
जाने क्‍यों डूबते सूरज के साथ
मेरी लाल ओढ़नी में
महकने लगते हैं
तुम्‍हारी पीली डायरी के
कुछ सूखे फूल।
शहर के बेपनाह शोर में
उभरता है एक सन्‍नाटा
और गूंजने लगते हैं,
कुछ शेर, कुछ नज्म़ें
वो कविता जो पढ़ी थी
तुमने कभी मेरी आंखों में।
अचानक चमकती सड़क की
सफेद पट्टियां
बदल जाती हैं तुम्‍हारी शर्ट की पट्टियों में
जिस पर गिरा था
एक सुनहरा पंख पीपल के तले
अपनी उंगलियों से उठाकर जिसे
सुपुर्द किया था डायरी को,
जाने कैसे
रिक्‍शे की नीली छत
बदल जाती है नीली छतरी में
और बरसने लगता है सावन
यूं सिमटने लगती हूं मैं
जैसे मुझे घेरे हों तुम्‍हारी बाहें।
कभी-कभी कॉफी से उठता
सफेद धुआं तब्‍दील हो जाता है
एक बर्फबारी में,
जिससे जड़ जाती है
कमरे की हर चीज,
दो जलते हाथ थाम लेते हैं मुझे
और पिघलने लगती हूं मैं।
फिर मिल जाओगे मुझे,
किसी राह में किसी मोड़ पर...

Wednesday, August 5, 2009

भइया मत कहो

भइया शब्‍द यूपी और बिहार वालों की पहचान माना जाता है। ऐसा सुना है कि कुछ क्षेत्रों में इसे गाली भी माना जाता है। यकीनन वह क्षेत्र भारत के अत्‍याधुनिक क्षेत्रों में होंगे। वैसे मेरा मुद्दा यह है भी नहीं। आज राखी का त्‍योहार है, अरे नहीं भई राखी सावंत का नहीं। राखी नाम ही बदनाम हो गया है बिल्‍कुल भइया की ही तरह। जिसे चाहो बना लो भइया। आजकल भइया शब्‍द एक ऐसी ओढ़नी की तरह इस्‍तेमाल किया जाता है जिसे लड़कियां सुरक्षा का मजबूत कवच मान लेती हैं। पर क्‍या ऐसा होता है। अगर कोई लड़की किसी लड़के साथ ज्‍यादा हिलमिल जाती है तो समाज की निगाहें तिरछी हो जाती हैं जरूर कोई चक्‍कर है, लड़कियां बडे़ ही गुस्‍से में उन्‍हें भाई बनाते हुए कहती हैं कि अरे यह तो मेरा भइया है।
लड़कियां उन लड़कों को भइया बना डालती हैं जिनसे उन्हें थोडा़ भी खतरा महसूस होता है, यानि कि सुरक्षा का मजबूत कवच। लेकिन ऐसा होता नहीं। किसी की सोच आपके लिए बदल नहीं जाती। भइया कह देने मात्र से कोई पुरूष आपका भाई नहीं बन जाता। उसके विचार एक पुरुष की जगह एक भाई के नहीं हो जाते। अक्‍सर लड़के भी इस हथियार का इस्‍तेमाल कर ही लेते हैं कि तुम्‍हें मुझ पर भरोसा नहीं है, मैं तुम्‍हारे भाई जैसा हूं यार, चाहो तो इस रक्षाबंधन पर राखी बांध देना। गरज बस इतनी कि आप उन पर भरोसा कर उनसे बात करें, उनके साथ घूमें और वह आपका फायदा उठा सकें।
कार्यालयों में भी अक्‍सर लड़कियां कुछ ऐसे ही पैंतरों का इस्‍तेमाल करती हैं। जिससे उनका फायदा निकल सकता उसे भैया बना लेती हैं। हर किसी को भइया का संबोधन देकर अपने को सुरक्षित कर लेती हैं। जिसे उन्‍होंने भाई कह दिया उसकी नजरों में वह पाक साफ हो गई। आजकल तो हालात इतने खराब हो गए हैं कि प्रेमी-प्रेमिका दुनिया से खुद को बचाने का यही रास्‍ता समझ आता है कि एक-दूसरे को भाई बहन बता दो।
क्‍या दुनिया के बाकी रिश्‍ते अपवित्र ही होते हैं? क्‍या एक लड़का और एक लड़की का रिश्‍ता तभी पवित्र है जब वह भाई बहन हो? क्‍या किसी को भी भइया कह देने से वह आपका भाई बन जाता है? क्‍या हम इसे कोई और नाम नहीं दे सकते? हम इतने गंदे हैं या हमारा समाज कि इतने पवित्र रिश्‍ते को इस तरह से बदनाम करने पर मजबूर हैं?
भाई बहन का रिश्‍ता बहुत पवित्र रिश्‍ता है, यह रिश्‍ता है भरोसे का, यह रिश्‍ता है मानका, यह रिश्‍ता है रक्षा का। और भी रास्‍ते हैं खुद को सुरक्षित करने के, और भी रिश्‍ते हैं दुनिया में बनाने को, और भी रास्‍ते हैं खुद को दुनिया की नजरों से बचाने के और एक लड़का और लड़की अच्‍छे दोस्‍त भी हो सकते हैं बशर्ते आपके मन में कोई चोर न हो। ऑफिस में काम करने वाले आपके कलीग हैं उन्‍हें वही रहने दें तो अच्‍छा है तो कृपया इस रिश्‍ते का यूं अपमान न करें, इसलिए प्‍लीज हर किसी को भइया मत कहें।

Monday, August 3, 2009

क्‍या मुझसे दोस्‍ती करोगे

कहते हैं कि कुछ रिश्‍ते ऊपरवाला बनाता है, कुछ रिश्‍ते लोग बनाते हैं पर कुछ लोग बिना किसी रिश्‍ते के ही रिश्‍ते निभाते हैं शायद वही दोस्‍त कहलाते हैं। दोस्‍ती एक अनमोल रिश्‍ता है एक दोस्‍त में आप बहुत से रिश्‍तों का समावेश पा जाते हैं। कभी वह बाप की तरह डांटता है तो कभी भाई की तरह समझाता है। दोस्‍त वह होता है जिसके पास आपकी हर मुश्किल का हल होता है, दोस्‍त वह होता है जो बिना कहे ही आपकी सारी बातें समझ लेता है।
एक अच्‍छा दोस्‍त किस्‍मत से ही मिलता है। लेकिन आज हर गली और चौराहे पर आपको दोस्‍ती का उपहार खूबसूरत पैंकिंग में लिपटा हुआ मिल जाएगा। बहुत सी खुशबू बिखेरता और बहुत सी साज-सज्‍जाओं से लैस लोग आपको दोस्‍त बनाने को आतुर रहते हैं। इनका एक ही सवाल होता है क्‍या मुझसे दोस्‍ती करोगे, नई-नई बहार से मिलोगे। उनकी दोस्‍ती धीरे-धीरे आगे बढ़ती है। आपके बचपन का दोस्‍त तो बस यह समझ पाता है कि आप क्‍या सोच रहे हैं लेकिन यह दोस्‍त तो वह भी समझ जाते हैं जो आप नहीं सोच रहे हैं।
इनकी दोस्‍ती की शुरुआत चैटिंग या फोन पर बात करने से शुरू होती है। यह आपसे बेहद मीठी-मीठी बातें करते हैं, सपनों की दुनिया की सैर कराते हैं। अगर आप गलती से भी उन्‍हें सच का सामना करवा दें तो वह अपने को किसी देव पुरुष की तरह सच्‍चा साबित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं (हालांकि वह इसमें सफल नहीं हो पाते)। उनके कुछ पिटे-पिटाए डायलॉग होते हैं जैसे मैं समझता हूं इस सोसाइटी को, बेहद गंदी मानसिकता है यहां के लोगों की, इनके तो दिमाग में ही गंदगी भरी है, देखिए मैं हर लड़की से बात नहीं करता, आप मुझे सबसे अलग लगीं, मैं इस सिस्‍टम का हिस्‍सा नहीं, मुझे आप औरों जैसा बिल्‍कुल न समझिए वगैरह-वगैरह।
इनकी मित्रता मेरी तो समझ में नहीं आती आखिर फोन पर बात करने और नेट पर चैटियाने से कोई मित्र कैसे हो सकता है वह भी उल जलूल बाते करने वाला। अगर मैं अपने मित्र के बारे में कहूं तो मेरी हर एक ड्रेस चुनने से लेकर जीवन साथी तक चुनने में उसका सहयोग रहा है। लात घूंसों और मुक्‍कों से स्‍वागत का रिवाज है। एक दूसरे के बिना एक कदम न बढाने की गैर हिम्‍मती भी जुडी़ हुई है। खैर जाकि बंदरिया, उही से नाचे वाले हाल यहां भी हैं। हमें इस दोस्‍ती का तजुर्बा ही नहीं।
कई बार तो आपके रॉन्ग नंबर से फोन आता है, किसी अनजाने का वह आपसे यह कहेगा कि मुझे आपसे दोस्‍ती करनी है बस, प्‍लीज आप मुझसे दोस्‍ती कर लीजिए। बडी़ ही मासूम होती है उनकी यह फीलिंग उन्‍हें आपकी उम्र, शक्‍ल और शादीशुदा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता उन्‍हें तो बस एक हसीना से बात करने का सुख मिलता है। बहुत बार आपके जानने वाले भी ऐसा ही करने का प्रयास करते हैं इनमें आपके सहकर्मी या सहकर्मी के दोस्‍त या दोस्‍त के दोस्‍त भी शामिल रहते हैं। जिन्‍हें अगर एक लड़की का नम्‍बर मिल जाए या ईमेल आईडी मिल जाए तो एक सेकेंड भी नहीं लगता दोस्‍ती का हाथ बढ़ाने में। अगर आप उनको जानती हैं तो वह अपने को महान साबित करेंगे। आपको बहन तक कह देंगे हालांकि उनके कुत्सित दिमाग का मामला ही कुछ और होता है। अगर दोस्‍ती का ऑफर देने वाला अनजान है तो किसी मुम्‍बइया हीरो की तरह प्रेम के देश का वासी होने का प्रमाण देंगे। बेहद समझदार, खुली और आधुनिक सोच वाला, आपको आदर्श का पाठ पढ़ाने वाला दुनिया की खूबसूरती से आपको परिचित कराने वाला। आप अगर इनकी दोस्‍ती से इनकार कर दें तो अक्‍सर इनकी ईगो को ठेस पहुंच जाती है।
अनजान हसीना के खयालों में डूबे रहने वाले ऐसे ही किसी दोस्‍त की ऑफर आपको भी मिल सकती है। तो सावधान मित्रता की ये ऑफर वैसे तो कभी भी मिलती रहती लेकिन चूंकि अगस्‍त माह का पहला सप्‍ताह है तो खास ऑफर मिल सकते हैं। वैसे आप सभी को थोड़ी देर से हैप्‍पी फ्रेंडशिप डे।