Friday, December 4, 2009


दोस्त मेरा...

कभी फूल तो कभी गुल्नारों की बातें करता था
दोस्त मेरा चाँद सितारों की बातें करता था
दूर तलक कड़ी धूप में चलते चलते
दोस्त मेरा बहारों की बातें करता था
डूब गया गैरों को पार लगाने में
दोस्त मेरा किनारों की बातें करता था
ख़ुद अपनी हथेली पर पैर रखकर चला
दोस्त मेरा बेसहारों की बातें करता था
लहू भी जम गया है कहीं शिराओं में
दोस्त मेरा अपने प्यारों की बात करता था


दाग

तुम्हारे आँचल में टांकते हुए
चाँद सितारे मैंने जख्मी कर ली है
अपनी आत्मा तक
इससे टपका लहू का एक कतरा
अनचाहे ही तुम्हारे आँचल में
पा गया है पनाह
और हो गया है सुर्खरू
इस बात से बेखबर
तुम्हारी निगाहों में होगा ये एक
दाग