अक्सर धरा की सहनशीलता के आगे
निम्न हो जाती है आकाश की विशालता
पूर्व नियोजित नहीं है यह उपेक्षा
शायद यह जानते थे तुम
या आदतन थी "चुप"
यह आज भी बड़ा रहस्यमय है
कुछ न कहना थी तुम्हारी महानता
या सब आँचल में समेट लेना था उसका स्वाभाव
कितने ही ग्रन्थ भरे पड़े हैं धरा की प्रशंसा से
कहीं कहीं तुम पर भी बरसी है उदारता
पर मर्म तो अब भी है अनछुआ
हर मांग को, हर बात को
स्वीकरोक्ति देते थे तुम ही
कठोर चेहरे और सख्त जुमलो के साथ
दिन भर चकरी सी घूमती धरा का आधार तुम थे
सब कुछ कर लेने की ताकत भी तुम थे
कितनी भिन्नता है दोनों में फिर भी
आखों में चमकते विश्वाह की लय ताल एक सी
तुम्हारी विशालता का भान उसे था
यही तो थी उसकी सहनशीलता की ताकत
सामान्य आँखे देख ही नहीं पाई उस उर्जा स्रोत को
जिसमे विलुप्त हो जाती थी धरा
बिना यह जाने क़ि तुम्हारे साथ ही मिट गई
साहस क़ि सारी निशानियाँ
धरा क़ि सारी हरियाली
तुम चले गए....
अपनी सारी विशालता लिए
गहरे नीले सागर में .....