
ख़त्म हो चुका है
मेरा और तुम्हारा
"रोल"
शुरू हो गई है 'जिंदगी'
पहने गए हैं पुराने libas
किन्तु मंच पर अब भी जीवित हैं
'अजन्मे किरदार'
जिनकी जुबा पर
स्वाद ही नहीं जीवन का
वह भी बिलख रहें हैं इनकी भूख में
यूँ स्नेह से न देखो इन्हें
त्याग दो इनका मोह तुम
करो इनकी मुक्ति का कुछ योग
कहो अलविदा
दे दो इन्हें "मुक्ति की विदाई"
ताकि फिर जन्म ले सके नया किरदार
सजता रहे यूँ ही रंगमंच
और फैलती रहे जीवन की आभा भी.
नया किरदार
ReplyDeleteनई भूमिका
नई अभिव्यक्ति
नूतन भाव लिये नई रचना
गिर चुका है रंगमच का पर्दा
ReplyDeleteकिन्तु मंच पर अब भी जीवित हैं
'अजन्मे किरदार'..दे दो इन्हें "मुक्ति की विदाई"
हर लफ्ज़ अपनी मुकम्मल पहचान पा सका है..... देर से ही सही लेकिन जब कलम चली तो अबतक की बेहतरीन अभिव्यक्ति को चेहरा मिल गया....लेखन और अभिव्यक्ति की अद्भुत क्षमता है तुममें.... इसे खोने मत देना.... इसी कलम के जरिये अजन्मे किरदारों को ज़िंदगी मिल सकती है।
जीवन का गूढ़ रहस्य छिपा है इन पंक्तियों में तो.. बहुत खूब
ReplyDeletemiktibodh...
ReplyDeletesonalika ji,
ReplyDeletebahut dino ke baad kuch uttam padhne ke liye mila. aabhar aur aapko woman's day ki wishes.
thanks.
chalo achcha hai nai zindagi mubarak ho....
ReplyDelete"नया करने के लिये पुराना तो छोड़ना ही पड़ता है यही शाश्वत सत्य है..."
ReplyDeleteamitraghat.blogspot.com
अति सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर शव्दो से सजाया है आप ने इस सुंदर कविता को.बहुत सुंदर
धन्यवाद
bahut khubsurat rachna
ReplyDeleteअद्भुत......ओर उपर का चित्र जैसे इस कविता के वास्ते बना है
ReplyDeleteजाना, आना तो लगा ही रहता है..नये किरदार आते रहते है..पुराने ओल्ड इज़ गोल्ड हो जाते है..
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना..
superb !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
umdaa....behatareen....aafareen!!
ReplyDeleteduniya rang manch hi to hai..
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
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