Sunday, March 7, 2010

'अजन्मे किरदार'

गिर चुका है रंगमच का पर्दा

ख़त्म हो चुका है


मेरा और तुम्हारा


"रोल"


शुरू हो गई है 'जिंदगी'


पहने गए हैं पुराने libas

किन्तु मंच पर अब भी जीवित हैं


'अजन्मे किरदार'


जिनकी जुबा पर


स्वाद ही नहीं जीवन का


वह भी बिलख रहें हैं इनकी भूख में


यूँ स्नेह से न देखो इन्हें


त्याग दो इनका मोह तुम


करो इनकी मुक्ति का कुछ योग


कहो अलविदा


दे दो इन्हें "मुक्ति की विदाई"


ताकि फिर जन्म ले सके नया किरदार

सजता रहे यूँ ही रंगमंच

और फैलती रहे जीवन की आभा भी.











16 comments:

  1. नया किरदार
    नई भूमिका
    नई अभिव्यक्ति
    नूतन भाव लिये नई रचना

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  2. गिर चुका है रंगमच का पर्दा
    किन्तु मंच पर अब भी जीवित हैं
    'अजन्मे किरदार'..दे दो इन्हें "मुक्ति की विदाई"
    हर लफ्ज़ अपनी मुकम्मल पहचान पा सका है..... देर से ही सही लेकिन जब कलम चली तो अबतक की बेहतरीन अभिव्यक्ति को चेहरा मिल गया....लेखन और अभिव्यक्ति की अद्भुत क्षमता है तुममें.... इसे खोने मत देना.... इसी कलम के जरिये अजन्मे किरदारों को ज़िंदगी मिल सकती है।

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  3. जीवन का गूढ़ रहस्य छिपा है इन पंक्तियों में तो.. बहुत खूब

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  4. sonalika ji,
    bahut dino ke baad kuch uttam padhne ke liye mila. aabhar aur aapko woman's day ki wishes.

    thanks.

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  5. chalo achcha hai nai zindagi mubarak ho....

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  6. "नया करने के लिये पुराना तो छोड़ना ही पड़ता है यही शाश्वत सत्य है..."
    amitraghat.blogspot.com

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  7. अति सुन्दर प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर शव्दो से सजाया है आप ने इस सुंदर कविता को.बहुत सुंदर
    धन्यवाद

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  8. अद्भुत......ओर उपर का चित्र जैसे इस कविता के वास्ते बना है

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  9. जाना, आना तो लगा ही रहता है..नये किरदार आते रहते है..पुराने ओल्ड इज़ गोल्ड हो जाते है..

    बहुत प्यारी रचना..

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  10. बहुत सुन्दर!
    घुघूती बासूती

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  11. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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