अंजुरियों में भर लेती हूँ
देखती हूँ,
मुस्कुराती हूँ,
जाने क्या कहते हैं?
जाने क्या सुन जाती हूँ.
कभी घबराकर,
कभी शरमाकर,
छुपा देती हूँ इनके बीच चेहरा
'अपना'
चिपक जातें हैं पेशानी से लबों तक,
'अक्स', 'खुशबू'
'सिमटना',' बिखरना'
'राख' और 'ख्वाब'
'अजीज', 'पुरनम'
'सायबान', 'सूरज'
मुझे रोककर,
मुड़ जातें हैं अक्सर.
मैं, तुम और हम
कहीं से उठतें हैं,
कहीं जुड़ जानतें हैं
कभी ये पीछे,
कभी मैं इनके
कभी खो जानते है
कभी छा जाते हैं
बिखर जाते हैं
जमीं और आसमा पर,
सिमट जाएँ तो
बनाते हैं चेहरा तुम्हारा.
क्या अर्थ बताते हो तुम
क्या समझातें हैं ये मुझको
और यूँ ही गुजर जाता है 'दिन'
'तुम्हारे ढेर से शब्दों' के बीच
देखती हूँ,
मुस्कुराती हूँ,
जाने क्या कहते हैं?
जाने क्या सुन जाती हूँ.
कभी घबराकर,
कभी शरमाकर,
छुपा देती हूँ इनके बीच चेहरा
'अपना'
चिपक जातें हैं पेशानी से लबों तक,
'अक्स', 'खुशबू'
'सिमटना',' बिखरना'
'राख' और 'ख्वाब'
'अजीज', 'पुरनम'
'सायबान', 'सूरज'
मुझे रोककर,
मुड़ जातें हैं अक्सर.
मैं, तुम और हम
कहीं से उठतें हैं,
कहीं जुड़ जानतें हैं
कभी ये पीछे,
कभी मैं इनके
कभी खो जानते है
कभी छा जाते हैं
बिखर जाते हैं
जमीं और आसमा पर,
सिमट जाएँ तो
बनाते हैं चेहरा तुम्हारा.
क्या अर्थ बताते हो तुम
क्या समझातें हैं ये मुझको
और यूँ ही गुजर जाता है 'दिन'
'तुम्हारे ढेर से शब्दों' के बीच
अच्छी रचना ,शब्दों का सुंदर चयन और प्रयोग
ReplyDeleteक्या गहरा एहसास लिए हुए है ये रचना
ReplyDeleteWAAH....KOMAL PRANAY BHAVON KI ATISUNDAR ABHIVYAKTI....
ReplyDeleteSUNDAR RACHNA...WAAH !!!
बहुत सुन्दर रचना लगी , आपके शब्दो के चयन लाजवाब लगा ।
ReplyDelete"ख्यालों की दुनियां" और "तुम्हारे ढेर से शब्द"
ReplyDelete"चिपक जातें हैं पेशानी से लबों तक,
'अक्स', 'खुशबू'
'सिमटना',' बिखरना'
'राख' और 'ख्वाब'
'अजीज', 'पुरनम'
'सायबान', 'सूरज'
मुझे रोककर,
मुड़ जातें हैं अक्सर"
सारगर्भित लगे - शुभकामनाएं
खूबसूरत
ReplyDeleteone of the best ones from your magical pen!
ReplyDeletegreat....carry on!
bahut achchi rachna
ReplyDeletegr8 poem
ReplyDelete'अक्स', 'खुशबू'
ReplyDelete'सिमटना',' बिखरना'
'राख' और 'ख्वाब'
'अजीज', 'पुरनम'
'सायबान', 'सूरज'
in jese shbdo ne rachna ko behatar banaya.aour jab dher saare shbdo ki baat he to rachna ki jaroorat bhi the.
sundar rachna.
क्या अर्थ बताते हो तुम
ReplyDeleteक्या समझातें हैं ये मुझको
और यूँ ही गुजर जाता है 'दिन'
'तुम्हारे ढेर से शब्दों' के बीच ..
शब्द शब्द शब्द ..... शब्द बिखरे हों उनके तो जीवन में और क्या चाहिए ..... प्रेम ही टपकता हो आसमान से तो छत क्यों चाहिए ... अच्छे भाव से गुँथी कविता ....
tum mein kuch, aur mujhmein kuch...pal mein jut gaya sab kuch... behad nazuk abhivyakti..
ReplyDeletekaafi dino baad aayi....aur yakeen maniye...deri ke liye pachtaai....bejod
ReplyDelete"एक प्रवाहमयी कृति..."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
बहुत खूब! बातों बातों में दिल की गहराईयां नाप ली गई हों जैसे....। चिपक जातें हैं पेशानी से लबों तक,
ReplyDelete'अक्स', 'खुशबू'
'सिमटना',' बिखरना'
'राख' और 'ख्वाब'
'अजीज', 'पुरनम'
'सायबान', 'सूरज'
मुझे रोककर,
मुड़ जातें हैं अक्सर..... नामों में तलाशती रहती हैं यादें किसी गुज़रे लम्हे को, और अंतरतम की गहराईयों में कुछ समा सा जाता है...इतना कि कुछ पता ही नहीं चलता.... एक "अच्छी कृति"! अब कुछ कहने को शेष नहीं बचता।
prbhavshali rachna
ReplyDeleteabhar
सुंदर नज़्म.
ReplyDelete..बधाई.
हैलो, सोनालिका
ReplyDeleteआज तुम्हारे एक और गुण से परिचित हुआ। शब्द,भावनाएं सभी के अंदर होती हैं। पर उसकी गुथ्मगुथ्ती को पन्नों पर उकेरना सबके बस की बात नहीं है।
‘तुम्हारे ढेर सारे शब्द’ शीर्षक से लिखी कविता ‘सर्वोतम’ है। कविता में जो लय है। कमाल है। शब्दों का प्रयोग सुन्दर।
अंजुरियों। शब्द देखकर ही मैंने यह कविता पढ़ी क्योंकि अब यह सभी सुन्दर शब्द खोते जा रहें हैं। इनका प्रयोग निश्चित ही होना चाहिए। यह जिम्मेदारी सबकी है। और तुम उस पर खरी उतरी।
कविता हो या कहानी तभी लोगों को प्रभावित करती है जब वह उसे महसूस कर लिखता है।
संजय श्रीवास्तव
29-03-2010
tum hi mein kho kar, khud ko pana
ReplyDeleteyahi to hai ehsaas - e - ishq....
khoobsoorat!!