Saturday, October 3, 2009



अब शांति से सोने दो
मत सजाओ मुझे चौराहे पर,
अब शांति से सोने दो।
मत सुनाओ बच्चों को मेरी कहानी
कि मन में टीस उठती है,
मत रखो रास्तों के नाम मुझ पर
मेरे नंगे पैरों में छाले पड़ते हैं,
सब किया मैंने तुम्हारे लिए,
जिया हूं मैं बस तुम्हारे लिए,
मैंने जीना सिखाया सपने दिए,
देख सकते हो तुम, सोच सकते हो तुम,
बहुत कुछ कर सकते हो तुम।
मत सजाओ अब मेरी तस्वीर को
कि आंखें मेरी अब नम रहती हैं,
मत चढ़ाओ मुझ पर फूलों को तुम
नाजुक पंखुड़ियां भी चुभती हैं,
आज क्यों आए हो सर झुकाने अपना,
मेरी हर सांस तो हमेशा तुम्हें दुआ देती है।

11 comments:

  1. सुंदर भाव...सुंदर कविता बधाई!!!

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  2. खूब सूरत भाव अच्छी रचना

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  3. Im speechless..... gandhi ke sapno ka 1%bharat bhi ham nahi bana paaye...fil unke naam par ye dikhawa kyo ? .....

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  4. vinod ji, mahendra ji, mahfooj ji or priya ji utsahwardan ke liye bahut shukriya. bahut dino baad blog per louti thi. apne yaad rakha iske liye bhi shukriya.

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  5. सच है व्यवस्था में बढती हुई बेचैनी ने सुकोमल मन को भी ऐसी कविता कहने को बाध्य किया है, सुंदर कविता !!

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  6. bahut sunder.......apne nishabd kab diya....

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  7. गांधी जी को सच्ची शब्दांजली

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  8. खूब सूरत भाव अच्छी रचना

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