Friday, December 4, 2009


दोस्त मेरा...

कभी फूल तो कभी गुल्नारों की बातें करता था
दोस्त मेरा चाँद सितारों की बातें करता था
दूर तलक कड़ी धूप में चलते चलते
दोस्त मेरा बहारों की बातें करता था
डूब गया गैरों को पार लगाने में
दोस्त मेरा किनारों की बातें करता था
ख़ुद अपनी हथेली पर पैर रखकर चला
दोस्त मेरा बेसहारों की बातें करता था
लहू भी जम गया है कहीं शिराओं में
दोस्त मेरा अपने प्यारों की बात करता था


दाग

तुम्हारे आँचल में टांकते हुए
चाँद सितारे मैंने जख्मी कर ली है
अपनी आत्मा तक
इससे टपका लहू का एक कतरा
अनचाहे ही तुम्हारे आँचल में
पा गया है पनाह
और हो गया है सुर्खरू
इस बात से बेखबर
तुम्हारी निगाहों में होगा ये एक
दाग

20 comments:

  1. डूब गया गैरों को पार लगाने में
    दोस्त मेरा किनारों की बातें करता था
    ख़ुद अपनी हथेली पर पैर रखकर चला
    दोस्त मेरा बेसहारों की बातें करता था

    लाजबाब !

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  2. डूब गया गैरों को पार लगाने में
    दोस्त मेरा किनारों की बातें करता था

    बहुत ही बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  3. बहुत सुंदर है दोनों !!

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  4. बहुत ही बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ......

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  5. दोनों रचनायें अच्छी लगीं

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  6. जिस तरह आपने एक तरफ दोस्त के बारे में बताते हुए एक अच्छे इंसान की और साथ ही समाज की बात कही वहीं आपने दूसरी रचना में चाहने वाले की आत्मा और मन दोनों को दिखा दिया है.

    आपकी रचना गर्मी में ठंडी हवा के झौंके के समान होती है. पढ़कर मान प्रसन्न हो जाता है.

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  7. wah wah wah...
    bahut he badhiya rachna hai ji aapki...

    cheers!
    http://shayarichawla.blogspot.com/

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  8. dost mera me to tumne bahut gahri baat kahi kash mera hi koi aisa dost hota

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  9. लहू टपके तो असर तो होगा ही... क्या फर्क पड़ता है अगर कोई किसी की नज़र में दाग हो.... आसूदगी(संतुष्टि) मयस्सर तो है.... संवेदनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्ति देखने को मिली है "दाग़" में....।
    और ग़ज़ल के सिलसिले में- डूबते को किनारे लगानेवाले किस्मत के भरोसे नहीं खुद के दम पर पार लगाते हैं.... लिहाज़ा डूब भी जाएं तो सबक तो बन ही जाते हैं... गज़ल में खुद अपनी हथेली पर पांव रखकर चलने का हासिल दर्द ही है....ग़ज़ल दर्द का एहसास तो कराती ही है.... जिंदगी की उन सच्चाईयों की एक झलक भी दिखाती है जिनके सहारे दुनिया में याद रखे जाने की वजहें तैयार होती हैं। ( पुनरावृत्ति की कुछ कमियों के बावजूद बेहतरीन प्रस्तुति..)

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  10. आजकल ऐसे ही दोस्त मिलते हैं, जो दाग़ दे जाते हैं.. दुश्मनों की ज़रूरत क्या है फिर हमें..

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  11. बेहतरीन प्रस्तुति....हमेशा आपके नए पोस्ट का इंतजार रहता है।

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  12. लहू भी जम गया है कहीं शिराओं में
    दोस्त मेरा अपने प्यारों की बात करता था !

    really very nice...

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  13. ये दाग नही चाँद है .... बिंदिया है माथे पर ... नसीब वालों को ही नसीब होती है ..... सुंदर रचनाएँ .....

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