Monday, August 17, 2009

समयांतर की वृद्धि

क्‍या तुमने देखा है
कलियों को फूल बनते हुए,
अपनो को पराए होते,
बीज का पौधा, पौधे का पेड,
बच्‍ची को लड़की, लड़की के दुल्‍हन
बनने का सफर,
ढूंढना मुश्किल है,
समयांतर की वृद्धि को
मुझे दिख नहीं रहा,
वह दिन, वह पल, वह क्षण
जब अलग हो गए
मेरे दुख
तुम्‍हारे सुखों से
पहले तो एक जैसे ही थे,
मेरे तुम्‍हारे सुख-दु्ख।

12 comments:

  1. हाँ मैंने देखा है बहुत कुछ बदलते हुए....
    वैसे आपकी रचना अपनी बात बहुत सही तरीके से कहती है

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  2. anil ji pahle to shukriya
    apne kaha ki mai apni baat sahi tarike se kahati hoon lekin aap ashwast nahi hai. jiwan ke badlaw ko samjhane ek koshish matra hai.

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  3. काल चक्र को सब देखता है भले ही कोइ आंखे मूंद ले ..........

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  4. कमाल की रचना है .........

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  5. accha likha hai apne

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  6. हर स्त्री की जीवन यात्रा पुरुष के साथ होते हुए भी एक नितांत निजी,समानान्तर पथ पर भी होती है जहां उसके अपने दुःख उसके साथ चलते है.इस कविता का मेरा पाठ तो यही है.

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  7. amritonfire@yahoo.co.inAugust 20, 2009 at 8:10 AM

    क्या कहूं...नि:शब्द हूं...लगभग समस्त रचनाओं को पढ़ डाला।
    हां बस इतना तो ज़रूर बता सकता हूं कि आपके शब्दों से उठे भाव ने मरे मन को और गहरा कर दिया है। लिहाजा पढ़ने के बाद भी उन्हीं रचनाओं में घुमड़ रहा हूं.....
    बेहतरीन....

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  8. रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

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  9. behtarin rahcna hai.man mein bahut si batein ekbargi hi umad aayi hai.
    Navnit Nirav

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  10. बहुत खूब
    http://somadri.blogspot.com

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  11. मुझे दिख नहीं रहा,
    वह दिन, वह पल, वह क्षण
    जब अलग हो गए
    मेरे दुख
    तुम्‍हारे सुखों से
    पहले तो एक जैसे ही थे,
    मेरे तुम्‍हारे सुख-दु्ख।


    bahut hi touchy lines hain.......

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  12. वो साथ साथ रहते हैं.... कभी छोड़कर नहीं जाते.... खुशनुमा लम्हों को उनके पांवों के निशानों में ढूंढने की सारी कोशिशें सिवा दर्द के कुछ देती ही नहीं... जब तक साथ रहे खुशियां दामन में समेटे नहीं आती थीं.... और आज......सब अलग... सुख तो सुख, दुख भी.....?कितना अजीब सा सुख होता है पौधों को रोपने का... उन्हें बड़ा करने का... अब साए की ख्वाहिशें सिवा दर्द के अपने दामन में कुछ न लाएं तो कोई क्या करे....समयांतर की वृद्धि को देखने की तुम्हारी कोशिश ने नज्म में वो सबकुछ कहा है जो मौन रहकर ही कहा जा सकता है.... बेहतरीन.... ऐसी नज्में कभी कभी ही बन पड़ती हैं.... पहली दफा कहता हूं.... शुक्रिया... इस बेहतरीन नज्म के लिए।

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