कई दिनों से
मैंने तुम्हें फोन नहीं किया
बात नहीं की
कुछ घबराई हूं
डर जाती हूं
भरे गले से कैसे बात करुंगी
कैसे दे पाऊंगी हिसाब
ठोकरों का
जानती हूं बहुत सहनशील हो
धरा की तरह
लेकिन मैंने देखा है
तुमको
आंसुओं के साथ मेरी
चोटों पर मरहम लगाते हुए
तो कैसे कह दूं
बस के पीछे भागते भागते
लग गया है घाव गहरा
हर पल जिंदगी से जूझती मैं
हर मुश्किल से डटकर लड़ती मैं
कमजोर तो नहीं
तुम्हारी एक आवाज पर
छटपटा उठता है
दिल सहमें बच्चे की तरह
लाख कोशिशे करती हूं
तुमसे छुपाने को अपने दुख
पर तुम तो जानती हो मां
एक बार पूछोगी
क्या हुआ
तो क्या बांध न टूट जाएगा
मैंने तुम्हें फोन नहीं किया
बात नहीं की
कुछ घबराई हूं
डर जाती हूं
भरे गले से कैसे बात करुंगी
कैसे दे पाऊंगी हिसाब
ठोकरों का
जानती हूं बहुत सहनशील हो
धरा की तरह
लेकिन मैंने देखा है
तुमको
आंसुओं के साथ मेरी
चोटों पर मरहम लगाते हुए
तो कैसे कह दूं
बस के पीछे भागते भागते
लग गया है घाव गहरा
हर पल जिंदगी से जूझती मैं
हर मुश्किल से डटकर लड़ती मैं
कमजोर तो नहीं
तुम्हारी एक आवाज पर
छटपटा उठता है
दिल सहमें बच्चे की तरह
लाख कोशिशे करती हूं
तुमसे छुपाने को अपने दुख
पर तुम तो जानती हो मां
एक बार पूछोगी
क्या हुआ
तो क्या बांध न टूट जाएगा
jsahklfds
ReplyDeletejklsjlk;hfdsk
jlksjklfdjs'lj
jdklsjlk;dsj
hlsjltutw
jlkshku
jsrhljp
jhglkh
kawita bahut ker chukin ab uper jo likha hai use samajh ke batao
aapki kavita ne dil ko choo liya hai .. shabd ji uthe hai .....
ReplyDeleteलेकिन मैंने देखा है
तुमको
आंसुओं के साथ मेरी
चोटों पर मरहम लगाते हुए
these lines are ultimate ...
itni acchi rachna ke liye badhai ..............
meri nayi poem padhiyenga ...
http://poemsofvijay.blogspot.com
Regards,
Vijay
पर तुम तो जानती हो मां
ReplyDeleteएक बार पूछोगी
क्या हुआ
तो क्या बांध न टूट जाएगा
sundar ati sundar
पर तुम तो जानती हो मां
ReplyDeleteएक बार पूछोगी
क्या हुआ
तो क्या बांध न टूट जाएगा..
bahut achi kavita