Saturday, May 9, 2009

तो क्‍या बांध न टूट जाएगा

कई दिनों से
मैंने तुम्‍हें फोन नहीं किया
बात नहीं की
कुछ घबराई हूं
डर जाती हूं
भरे गले से कैसे बात करुंगी
कैसे दे पाऊंगी हिसाब
ठोकरों का
जानती हूं बहुत सहनशील हो
धरा की तरह
लेकिन मैंने देखा है
तुमको
आंसुओं के साथ मेरी
चोटों पर मरहम लगाते हुए
तो कैसे कह दूं
बस के पीछे भागते भागते
लग गया है घाव गहरा
हर पल जिंदगी से जूझती मैं
हर मुश्किल से डटकर लड़ती मैं
कमजोर तो नहीं
तुम्‍हारी एक आवाज पर
छटपटा उठता है
दिल सहमें बच्‍चे की तरह
लाख कोशिशे करती हूं
तुमसे छुपाने को अपने दुख
पर तुम तो जानती हो मां
एक बार पूछोगी
क्‍या हुआ
तो क्‍या बांध न टूट जाएगा

4 comments:

  1. jsahklfds
    jklsjlk;hfdsk
    jlksjklfdjs'lj
    jdklsjlk;dsj
    hlsjltutw
    jlkshku
    jsrhljp
    jhglkh
    kawita bahut ker chukin ab uper jo likha hai use samajh ke batao

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  2. aapki kavita ne dil ko choo liya hai .. shabd ji uthe hai .....

    लेकिन मैंने देखा है
    तुमको
    आंसुओं के साथ मेरी
    चोटों पर मरहम लगाते हुए

    these lines are ultimate ...

    itni acchi rachna ke liye badhai ..............

    meri nayi poem padhiyenga ...
    http://poemsofvijay.blogspot.com

    Regards,

    Vijay

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  3. पर तुम तो जानती हो मां
    एक बार पूछोगी
    क्‍या हुआ
    तो क्‍या बांध न टूट जाएगा

    sundar ati sundar

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  4. पर तुम तो जानती हो मां
    एक बार पूछोगी
    क्‍या हुआ
    तो क्‍या बांध न टूट जाएगा..

    bahut achi kavita

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