दुनिया में न जाने कितनी ही हस्तियों ने आंखे ने खोली, अपना-अपना हुनर आजाया कुछ लोग तो बड़ी शान से उभरे उनका फन मशहूर हुआ मगर ये फन देर तक नहीं रह सका। उन्हें वह बुलंदियां नहीं नसीब हो सकी जिनके वो हकदार थे। जबकि कुछ लोग ऐसे भी पैदा हुए जिन्होंने जब अपने महबूब फ़न को लोगों के सामने पेश किया तो लोगों हाथों हाथ कुबूल किया उन्हें वह शोहरत और बुलंदी नसीब हुई जिसका उन्हें अंदाजा भी नहीं था। हिंदुस्तान की फिल्मी दुनियां में भी हजारों ऐसे चहरे ने जन्म लिया जो कुछ वक्त तक अपने हुनर से लोगों को दीवाना बनाते रहे मगर ऐसा वक्त भी आया जब वह उनका उंदाजो अदा लोगों को अपना गरवेदह न बना सका। फिल्मी दुनिया में कुछ ऐसे नाम हैं जो आज तक अपने हुनर की बदौलत दुनिया से जाने के बाद भी अपने चाहने वालों के ख्वाबों खयालों में जिंदा और ताबिंदा हैं। भारतीय फिल्मी दुनिया में बहुत सारे गीतकारों ने अपनी कलम का जादू बिखेरा और कुछ मुद्दत तक लोगों के दिलों पर राज भी किया लेकिन उनकी एक बार की खामोशी के बाद दोबारा लोगों ने उनकी तरफ मुड़कर नहीं देखा।
फिल्मी दुनिया के बेहतरीन गीतकारों का जिक्र हो और साहिर लुधियानवी की बात न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं। गीतकारों में साहिए एक ऐसा नाम है जिसने कई दहाईयों तक फिल्मी दुनिया पर राज किया और जिनके नगमों से फिल्मी दुनिया आज भी गूंज रही है। दुनिया से अलविदा कहने के 33 सालों बाद भी उनके गीत लोगों की जुबान आज भी हैं चाहे वो बुजुर्ग हो या नौजवान उनके गीतों के तो सभी दीवाने हैं। साहिर का असली नाम अब्दुल हई था इनकी पैदाइश 8 मार्च 1921 में लुधियाना में हुई थी। पढाई के दौरान हुस्न और इश्क के कारण उन्हें कालेज से भी निकाल दिया गया। उनका दिल धड़काने वाली लड़की कोई आम लड़की नहीं बल्कि जानी मानी लेखिका अमृता प्रीतम थी। दिल के रास्ते में ठोकर खाने के बाद साहिर लाहौर रवाना हो गए जहां मुसीबतों ने उनका पीछा नहीं छोडा़। एक बार जब हालात ने सितम ढाना शुरु किया तो यह सिलसिला लम्बे अरसे तक चलता रहा। अपने हालात से घबरा कर साहिर ने हिंदुस्तान जाने का निर्णय लिया और उन्होंने अपना सफर शुरू कर जो मुम्बई पर आकर खत्म हुआ। यही से साहिर ने अपनी नई जिंदकी की शुरुआत की और शुरू हुआ कामयाबियों का दौर जो साहिर के रूकने के साथ भी नहीं रूका और अब तक अपनी कामयाबियों की रौशनी फैला रहा है। म्बे सितम ढाना शुरु किया ताक
साहिर को अपनी जिंदगी में बहुत नाम कमाना चाहते थे उनकी इसी महत्वाकांक्षा ने उन्हें फिल्मी दुनिया से जोड़ दिया। साहिर जानते थे यही वह स्टेज है जहां उन्हें दौलत शोहरत तो मिलेगी ही वह बहुत आसानी से लोगों तक अपनी बात भी पहुंचा पाएंगे। इतना कारगर कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता था। लोग यह भी कहते हैं कि साहिर ने यही सोच कर मुम्बई की ओर रुख किया था।1949 में साहिर की पहली फिल्म आजादी की राह पर आई जो बहुत कामयाब नहीं हो पाई लेकिन 1950 में आई नौजवान फिल्म के गीतों ने नौजवानों का चैन उडा लिया। ये गीत इतने मशहूर हुए कि आज भी लोगों को याद हैं। साहिर की कामयाबियों की दास्ता शुरू हो चुकी थी। साहिर ने जहां अपने गीतों पर लोगों को झूमने के लिए मजबूर किया वही फिल्मी दुनिया की मशहूर हस्तियों के साथ काम भी किया। साहिर और एसडी वर्मन की जोडी़ ने बाजी, जाल, टैक्सी ड्राइवर, मुनीम जी और प्यासा जैसी फिल्मों में अपने गीत संगीत के बेहतरीन तालमेल से धूम मचा दी। व़हीं रौशन के साथ मिलकर चित्रलेखा, बहूबेगम, दिल ही तो है, बरसात की रात, ताजमहल, बाबर और भीगी रात जैसी फिल्मों के जरिए अपने चाहनेवालों को दीवाना बना दिया। इसके अलावा उन्होंने ओपी नैय्यर, एन दत्ता, खैय्याम, जयदेव और कई दूसरे संगीतकारों के साथ काम किया और उनके साथ भी उन्होंने अपने चाहलने वालों को मायूस नहीं किया बल्कि उनकी कलम से मिलती है जिंदगी में मुहब्बबत कभी-कभी, नीले गगन के तले, छू लेने दो नाजुक होठों को, मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी, मैं जब भी अकेली हुई हूं, दामन में दाग लगा बैठे, अभी ना जाओ छोड के दिल अभी भरा नहीं, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया और रात भी है कुछ भीगी-भीगी जैसे लगमें लिखे जिसने उनके दीवानों को झूमने पर मजबूर कर दिया। आज भी उनके गानों के अल्फाज लोगों की जबान पर आज भी आम हैं। मन्ना त िए मजबूर किया वहींीं
साहिर पर उनके नाम का बहुत असर पड़ा वो वाकई लफ्ज़ों के जादूगर थे। वर्ना और क्या वजह थी कि अपने वक्त के महान लोगों के बीच में भी साहिर ने वह पहचान हासिल की जिसे आज तक भुलाया नहीं जा सका है। वह पाकिस्तान से आकर फिल्मी दुनिया में इस क़दर छाए कि उनके आगे पहले से अपनी जगह बना चुके लोगों की चमक भी फीकी पड़ गयी। फिल्मी सनअत की मौजूद भीड़ में उनके जरिए लिखे गये नगमों ने वो धूम मचायी कि लोग दूसरों को भूल गये और साहिर के सेहर का शिकार हो कर उनके दीवाने बन बैठे। साहिर ने अपने तीस साला फिल्मी सफ़र में हजारों गीत और नगमें लिखे जिसने उन्हें मकबूलियत की बलंदियों पर पहुंचा दिया। अपने वक्त में साहिर ने जवां दिलों की धड़कनों की नसों और उनकी रगों में दौड़ रहे दर्द को बार-बार लिखा और उनकी यही खासियत नौजवानों में उन्हें एक अहम मकाम दिलाने में कामयाब रही। साहिर के कई गानों ने बहुत शोहरत हासिल की जो आज भी खास ओ आम की जबान से सुने जा सकते हैं। जिन्हें नाज़ हैं हिंद पर ( प्यासा), जाने वो कैसे लोग थे ( प्यासा), ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो (प्यासा), वह सुबह तो कभी आएगी (फिर सुबह होगी), ये देश है वीर जवानों का ( नया दौर), हुस्न हाजिर है ( लैला मजनू), तुझको पुकारे मेरा प्यार ( नील कमल), जो वादा किया है व निभाना पड़ेगा( ताजमहल) वगैरह वगैरह उनके निहायत ही मकबूल गीतों में शुमार किये जाते हैं। साहिर ने हालात और हादसात को अपनी शायरी में और अपनी गीतों में पूरी तरह पिरो दिया था। चुनाचे उन्होंने कभी तो हिंदुस्तान के लोगों को बेदार करने की कोशिश की तो कभी समाज के बुरे ऱस्मों रिवाज पर चोट की। उनकी यही खासियत थी कि जिसकी वजह से वह अपने चाहने वालों में इस कदर मक़बूल हुए लेकिन नशे के जद में ऐसे आए कि वो अपने चाहने वालों के दरम्यान ज़्यादा दिन तक नहीं रह सके। अदब और संगीत का ये अजीम संगम १९७६ में अपने चाहने वालों से जुदा हो गया।
फिल्मी दुनिया के बेहतरीन गीतकारों का जिक्र हो और साहिर लुधियानवी की बात न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं। गीतकारों में साहिए एक ऐसा नाम है जिसने कई दहाईयों तक फिल्मी दुनिया पर राज किया और जिनके नगमों से फिल्मी दुनिया आज भी गूंज रही है। दुनिया से अलविदा कहने के 33 सालों बाद भी उनके गीत लोगों की जुबान आज भी हैं चाहे वो बुजुर्ग हो या नौजवान उनके गीतों के तो सभी दीवाने हैं। साहिर का असली नाम अब्दुल हई था इनकी पैदाइश 8 मार्च 1921 में लुधियाना में हुई थी। पढाई के दौरान हुस्न और इश्क के कारण उन्हें कालेज से भी निकाल दिया गया। उनका दिल धड़काने वाली लड़की कोई आम लड़की नहीं बल्कि जानी मानी लेखिका अमृता प्रीतम थी। दिल के रास्ते में ठोकर खाने के बाद साहिर लाहौर रवाना हो गए जहां मुसीबतों ने उनका पीछा नहीं छोडा़। एक बार जब हालात ने सितम ढाना शुरु किया तो यह सिलसिला लम्बे अरसे तक चलता रहा। अपने हालात से घबरा कर साहिर ने हिंदुस्तान जाने का निर्णय लिया और उन्होंने अपना सफर शुरू कर जो मुम्बई पर आकर खत्म हुआ। यही से साहिर ने अपनी नई जिंदकी की शुरुआत की और शुरू हुआ कामयाबियों का दौर जो साहिर के रूकने के साथ भी नहीं रूका और अब तक अपनी कामयाबियों की रौशनी फैला रहा है। म्बे सितम ढाना शुरु किया ताक
साहिर को अपनी जिंदगी में बहुत नाम कमाना चाहते थे उनकी इसी महत्वाकांक्षा ने उन्हें फिल्मी दुनिया से जोड़ दिया। साहिर जानते थे यही वह स्टेज है जहां उन्हें दौलत शोहरत तो मिलेगी ही वह बहुत आसानी से लोगों तक अपनी बात भी पहुंचा पाएंगे। इतना कारगर कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता था। लोग यह भी कहते हैं कि साहिर ने यही सोच कर मुम्बई की ओर रुख किया था।1949 में साहिर की पहली फिल्म आजादी की राह पर आई जो बहुत कामयाब नहीं हो पाई लेकिन 1950 में आई नौजवान फिल्म के गीतों ने नौजवानों का चैन उडा लिया। ये गीत इतने मशहूर हुए कि आज भी लोगों को याद हैं। साहिर की कामयाबियों की दास्ता शुरू हो चुकी थी। साहिर ने जहां अपने गीतों पर लोगों को झूमने के लिए मजबूर किया वही फिल्मी दुनिया की मशहूर हस्तियों के साथ काम भी किया। साहिर और एसडी वर्मन की जोडी़ ने बाजी, जाल, टैक्सी ड्राइवर, मुनीम जी और प्यासा जैसी फिल्मों में अपने गीत संगीत के बेहतरीन तालमेल से धूम मचा दी। व़हीं रौशन के साथ मिलकर चित्रलेखा, बहूबेगम, दिल ही तो है, बरसात की रात, ताजमहल, बाबर और भीगी रात जैसी फिल्मों के जरिए अपने चाहनेवालों को दीवाना बना दिया। इसके अलावा उन्होंने ओपी नैय्यर, एन दत्ता, खैय्याम, जयदेव और कई दूसरे संगीतकारों के साथ काम किया और उनके साथ भी उन्होंने अपने चाहलने वालों को मायूस नहीं किया बल्कि उनकी कलम से मिलती है जिंदगी में मुहब्बबत कभी-कभी, नीले गगन के तले, छू लेने दो नाजुक होठों को, मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी, मैं जब भी अकेली हुई हूं, दामन में दाग लगा बैठे, अभी ना जाओ छोड के दिल अभी भरा नहीं, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया और रात भी है कुछ भीगी-भीगी जैसे लगमें लिखे जिसने उनके दीवानों को झूमने पर मजबूर कर दिया। आज भी उनके गानों के अल्फाज लोगों की जबान पर आज भी आम हैं। मन्ना त िए मजबूर किया वहींीं
साहिर पर उनके नाम का बहुत असर पड़ा वो वाकई लफ्ज़ों के जादूगर थे। वर्ना और क्या वजह थी कि अपने वक्त के महान लोगों के बीच में भी साहिर ने वह पहचान हासिल की जिसे आज तक भुलाया नहीं जा सका है। वह पाकिस्तान से आकर फिल्मी दुनिया में इस क़दर छाए कि उनके आगे पहले से अपनी जगह बना चुके लोगों की चमक भी फीकी पड़ गयी। फिल्मी सनअत की मौजूद भीड़ में उनके जरिए लिखे गये नगमों ने वो धूम मचायी कि लोग दूसरों को भूल गये और साहिर के सेहर का शिकार हो कर उनके दीवाने बन बैठे। साहिर ने अपने तीस साला फिल्मी सफ़र में हजारों गीत और नगमें लिखे जिसने उन्हें मकबूलियत की बलंदियों पर पहुंचा दिया। अपने वक्त में साहिर ने जवां दिलों की धड़कनों की नसों और उनकी रगों में दौड़ रहे दर्द को बार-बार लिखा और उनकी यही खासियत नौजवानों में उन्हें एक अहम मकाम दिलाने में कामयाब रही। साहिर के कई गानों ने बहुत शोहरत हासिल की जो आज भी खास ओ आम की जबान से सुने जा सकते हैं। जिन्हें नाज़ हैं हिंद पर ( प्यासा), जाने वो कैसे लोग थे ( प्यासा), ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो (प्यासा), वह सुबह तो कभी आएगी (फिर सुबह होगी), ये देश है वीर जवानों का ( नया दौर), हुस्न हाजिर है ( लैला मजनू), तुझको पुकारे मेरा प्यार ( नील कमल), जो वादा किया है व निभाना पड़ेगा( ताजमहल) वगैरह वगैरह उनके निहायत ही मकबूल गीतों में शुमार किये जाते हैं। साहिर ने हालात और हादसात को अपनी शायरी में और अपनी गीतों में पूरी तरह पिरो दिया था। चुनाचे उन्होंने कभी तो हिंदुस्तान के लोगों को बेदार करने की कोशिश की तो कभी समाज के बुरे ऱस्मों रिवाज पर चोट की। उनकी यही खासियत थी कि जिसकी वजह से वह अपने चाहने वालों में इस कदर मक़बूल हुए लेकिन नशे के जद में ऐसे आए कि वो अपने चाहने वालों के दरम्यान ज़्यादा दिन तक नहीं रह सके। अदब और संगीत का ये अजीम संगम १९७६ में अपने चाहने वालों से जुदा हो गया।
बिल्कुल, साहिर साहब शब्दों के जादूगर ही तो थे तभी तो उन्होने जो शब्द लिखे अमर हो गये। उनकी शानदार रचनाओं में इन दो गानों का जिक्र जरूर होना चाहिये
ReplyDeleteचीनो- अरब हमारा, हिन्दोस्ताँ हमारा
रहने को घर नहीं है, सारा जहाँ हमारा
खोली भी छिन गयी है बेन्चें भी छिन गयी हैं
सड़कों पर घूमता है अब कारवाँ हमारा
जेबें है अपनी खाली, क्यों देता वरना गाली
वो सन्तरी हमारा , वो पासबाँ हमारा
जितनी भी बिल्डिंगे थी सेठों ने बाँट ली है
मालूम क्या किसी को, दर्द- ए- निहाँ हमारा
पतला है हाल अपना, लेकिन लहू है गाढ़ा
फ़ौलाद से बना है, हर नोजवाँ हमारा
मिल जुल के इस वतन को, एसा सजायेंगे हम
हैरत से मुँह ताकेगा सारा जहाँ हमाराऔर
आसमां पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम
आसमां पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल किसी को वो टोकता नहीं,
चाहे कुछ भी किजीये रोकता नहीं
हो रही है लूटमार फट रहे हैं बम
आसमां पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम
किसको भेजे वो यहां हाथ थामने
इस तमाम भीड का हाल जानने
आदमी हैं अनगिनत देवता हैं कम
आसमां पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम
जो भी है वो ठीक है ज़िक्र क्यों करें
हम ही सब जहां की फ़िक्र क्यों करें
जब उसे ही गम नहीं तो क्यों हमें हो गम
आसमां पे है खुदा और ज़मीं पे हम
आजकल वो इस तरफ़ देखता है कमइतनी लम्बी टिप्पणी करने के लिये क्षमा याचना, मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।
॥दस्तक॥|
गीतों की महफिल|
तकनीकी दस्तक
अच्छी कोशिश हस्तियों को याद करने की। वाह।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आप लखनऊ से हैं .... यह जानकार अच्छा लगा !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट लिखी है आपने !
आपके माध्यम से हर दिल अजीज 'साहिर' जी के
बारे में जानने को मिला !
आपके पोस्ट में मैं भी कुछ जोड़ना चाहूँगा .....
साहिर के पिता बहुत धनी थे पर माता-पिता में
अलगाव होने के कारण उन्हें माता के साथ रहना
पड़ा और गरीबी में गुजर करना पड़ा। साहिर वे
पहले गीतकार थे जिन्हें अपने गानों के लिए
रॉयल्टी मिलती थी । उनके प्रयास के बावजूद
ही संभव हो पाया कि आकाशवाणी पर गानों के
प्रसारण के समय गायक तथा संगीतकार के अतिरिक्त
गीतकारों का भी उल्लेख किया जाता था । इससे पहले
तक गानों के प्रसारण समय सिर्फ गायक तथा संगीतकार
का नाम ही उद्-घोषित होता था ।
आशा है आगे भी आप लेखन जारी रखेंगी !
मेरी हार्दिक शुभकामनायें
आज की आवाज
prashansaneey
ReplyDeleteBahut Bahut dhanyawad.Bahut saari batein jaanane ke liye milin sahir sahab ke bare mein.
ReplyDeleteNavnit Nirav
http://www.youtube.com/watch?v=1TA-Ng3vHbw
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=J41cAWaXaBY
ReplyDeletesahir ka matlab hota hai jadoogar..........aur voh vakai jaadoogar the
ReplyDeleteaapko achhi post k liye badhai
http://www.youtube.com/watch?v=Zr3Z5D60XnQ
ReplyDeleteबहुत खूब ,पसंद आया आपका ब्लॉग ..2-3 लिंक भेजी है देखिए आपको और जानकारी मिलेगी और साहिर लुधिआनवी साहब की शक्सियत को समझने जानने में सहायक होगी ,aur adhik jankari ke liye mere blogs par jaiye wahan khazana milega hindi oldies ka ,youtube par bhi mere gane hai search mastkaladr on youtube ..meri shubhkamnaye sadaaapke sath hai ..mastkalandr
Movie : Didi ( 1959 ) Music Director : Sudha Malhotra
Lyricist : Legendary urdu poet Sahir Ludhianvi
ज़िन्दगी सिर्फ मुहब्बत नहीं
कुछ और भी है
जुल्फ ओ रुखसार की जन्नत नहीं
कुछ और भी है
भूख और प्यास की
मारी हुई इस दुनिया में
इश्क ही एक हकीकत नहीं
कुछ और भी है...
Singers : Sudha Malhotra and Mukesh
Song : Tum Mujhe Bhool Bhi Jaao
Actors : Sunil Dutt, Shobha Khote, jayshree ,firoz khan ,Lalita Pawar
Lyrics :-
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
meri baat aur hai
maine to muhabbat ki hai
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
mere dil ki mere jazbaat ki
keemat kya hai
uljhe uljhe se khayalaat ki
keemat kya hai
maine kyun pyaar kiya
tumne na kyun pyaar kiya
in pareshaan sawalaat ki
keemat kya hai
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
meri baat aur hai
maine to muhabbat ki hai
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
zindagi sirf muhabbat nahi
kuchh aur bhi hai
zulf o rukhsaar ki jannat nahi
kuchh aur bhi hai
bhookh aur pyaas ki
maari hui is duniya mein
ishq hi ek haqeeqat nahi
kuchh aur bhi hai
tum agar aankh churaao to
ye haq hai tumko
maine tumse hi nahi
sabse muhabbat ki hai
tum agar aankh churaao to
ye haq hai tumko
tum ko duniya ke ghum o dard se
fursat na sahi
sab se ulfat sahi
mujhse hi muhabbat na sahi
main tumhaari hoon
yahi mere liye kya kam hai
tum mere ho ke raho
ye meri kismat na sahi
aur bhi dil ko jalaao
ye to haq hai tumko
meri baat aur hai
maine to muhabbat ki hai
tum mujhe bhool bhi jaao to
ye haq hai tumko
Category: People & Blogs
Tags: sudha malhotra didi sahir ludhianvi mukesh guru datt mastkalandr firoz khan shobha khote tum agar bhool bhi jao
वाह मेरे सिवा और भी हैं दीवाने साहिर के
ReplyDeleteअच्छा लगा ,बधाई
http://gazalkbahane.blogspot.com/
कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/
दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम
सोनालिका जी
ReplyDeleteइतना कुछ लिखा जा चुका है आपके ब्लॉग के बारे में कि मेरे लिये शुभकामनाओं और साहिर के प्रति श्रद्धांजलि के अतिरिक्त कुछ बचा ही नहीं।
सादर
जिन्हें लोग भुला दिए, उन्हें आपने याद किया'' सुभानअल्ला
ReplyDeleteआप भी हमारी मिटटी की पौध हैं, यह जानकर बेहद खुशी हुई। लिखने की कोशिश भी उम्दा है, अच्छा लगा
सुनील पाण्डेय
दैनिक जागरण, नई दिल्ली
09953090154
मैं तो साहिर जी की कलम का दीवाना हूँ ...वो जादूगर थे ....आपने इतना अच्छा लिखा है की सच पूंछो तो मैं कहीं खो ही गया
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
और हां ये वर्ड वेरिफिकेशन हटा देंगी तो लोगों को कमेन्ट करने में आसानी होगी और ज्यादा लोग अपनी बात कह सकेंगे
ReplyDeleteTERA MILANA khushi KI baat sahi
ReplyDeletetujh se milkar udas rahata hoon.
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteSahir ji ke geeton ke ham bhi kayal hain..
ReplyDeleteaap ne unhen yaad kiya..ham bhi unhen apni shrdhanjali dete hain.
achcha lekh hai.
jankari ke liye thanks.narayan narayan
ReplyDeleteसाहिर की यादें तरौताज़ा करने के लिये साधुवाद...
ReplyDeleteआप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
ReplyDeleteचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
Ek Sarthak Pahal Ki he Aapane Dhanyavad.KshetrapalSharma
ReplyDeleteचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है अच्छे विचार हैं आपके। लिखते रहीये हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletenice one..
ReplyDeletefind my blog at
http://sree-i-me-myself.blogspot.com/