व़ह कहता है कि उनके नाम के आगे गांधी लगा है इसमें उनकी कोई गलती नहीं है, वह यह भी कहता हैं कि सत्ता में रहने वाली सरकार सभी संस्थाओं का प्रयोग कहीं न कहीं अपने लाभ के लिए करती है इतना ही वह यह भी स्वीकार लेता हैं कि उसमे अभी प्रधानमंञी बनने की काबिलियत नहीं है, इन बातों को सुनकर लोग चौक गए कि इतनी बेबाक राय राजनीति में क्या यह भी कोई नया पैंतरा है। पुराने राजनैतिक यह सब सुनकर मन ही मन मुस्करा रहे थे। वे सभी यही सोच रहे थे कि अभी राज करने की नीति के बारे में इस नए-नए नेता बने गांधी को इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा तो समझ आ जाएगा कि ये सब जनता को थोड़े ही बताया जाता है। दलितों के घर में खाना खाने वाले राजकुमार को ढोंगी बताया जाने लगा। लगातार देश भर दौरा कर रहे इस युवा को नामी खानदान का होने की वजह से भी आलोचनाओं का सामना करना पडा़ लेकिन इस सबके बावजूद उसे अपना मिशन दिखता रहा वह शांत होकर अपना काम करता रहा और बैठकर रणनीतिया बनाने और आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय ज्यादा से ज्यादा जनता के बीच रहा। कांग्रेस का युवराज कहे जाने वाले राहुल ने अपने स्टार प्रचारक होने के दायित्व को खूब समझा और पूरी निष्ठा के साथ निभाया। वास्तव में निष्ठा का होना बहुत जरुरी है चाहे वह देश के प्रति हो या पार्टी के प्रति हो या स्वयं के प्रति। जो स्वयं के प्रति निष्ठावान है वह ही किसी और के प्रति हो सकता है।
आज सभी मान रहे हैं कि कांग्रेस की तस्वीर बदलने में राहुल गांधी का हाथ है पर यहां दिलाना जरुरी है कि यह सब आज का काम नहीं है। जब सभी नेता आने वाले चुनाव की बाते कर रहे थे तब यह कॉलेजों का दौरा कर रहा था। युवाओं से मिलरहे थे अपने कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे। युवा कांग्रेस में चुनाव की रणनीति तैयार कर रहे थे। अपने क्षेञ के दौरों के दौरान दलितो के घर रुकते थे और वहीं भोजन करते थे। संसद में पहली बार आवाज उठाते हैं तो कलावती जैसी गरीब महिला के मुद्दे पर।
अपने पिता की तरह बाते करने वाले राहुल अपने पिता की तरह ही बैरियर को तोड़कर जनता से मिलते हैं, पिता की तरह ही विरोधी पार्टियों की कमिया निकालने के बजाए सिस्टम को सुधारने की बाते करते हैं। उनकी रैली के दौरान अगर कोई गिर गया खुद उसे उठाने जाते हैं और सुरक्षार्मियों को हड़का भी देते हैं। सफेद कुर्ते पायजामे में नजर आने वाला यह नौजवान राजनैतिक पारी खेलना चाहता है लेकिन पूरी तरह से तप जाने के बाद। व़ह कोई पद सम्भालना चाहते है लेकिन देश की हर छोटी बडी़ समस्या को जान लेने के बाद, राजनीति का अनुभव लेने के बाद ही राजनैतिक पदों पर दावेदारी चाहते हैं यानि कि अपने योग्यता के बल पर न की गांधी उपनाम की एवज में। राहुल किसी जाति और सम्प्रदाय की बात नहीं करते, किसी सम्प्रदाय की बात नहीं करते वह बात करते हैं देश के आम नागरिक की, वह बात करते हैं व्यवस्था में लग चुके कीडो़ की।
देश भर में ताबडतोड़ 100 ज्यादा जनसभाएं करने वाले राहुल ने अपनी ईमानदारी और साफगोई से लोगों का दिल जीत लिया। कल तक जो विरोधी राहुल को बच्चा मान रहे थे वो गच्चा खाने के बाद मुंह बंद किए बैठे हैं। इस युवा गांधी में देश आने वाले भविष्य की तस्वीर देख रहा है। एक बात जो इन चुनावों में खुलकर सामने आई वह यह है कि लोग घुटे हुए नेताओं और उनके घटिया राजनैतिक पैतरों से छुटकारा पाना चाहते है।
आज की युवा पीढी सोचती है कि युवा भारत के सपने को पूरा करने के लिए यूथ फैक्टर की जरुरत है और यही कारण है युवाओं ने राहुल और उनकी युवा चौकडी़ को बिना किसी भ्रम के साथ मौका दिया। राहुल के आस पास दिखने वाले चेहरों की बात करें तो उसमें युवाओं की संख्या ज्यादा माञा में मिलेगी। कांग्रेस ने टिकट बांटने के मामले में भी युवाओं को तरजीह दी। जब सभी राजनेता और राजनैतिक दल ओछी बाते कर रहे थे मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के हथखंडे़ अपना रहे थे और दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे थे ऐसे में राहुल गांधी विकास की बात कर रहे थे। हर दल का नेता अपने को प्रधानमंञी पद का दावेदार बनाने में व्यस्त था तब मीडिया के बार-बार उकसाने के बावजूद राहुल ने मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंञी पद का उम्मीदार बताया। उन्होंने कहा कि व़ो देश के लिए काम करना चाहते है। उनकी यही बात लोगों के दिल को छू गई कि जोश से भरा यह युवक जिसके नाम के साथ गांधी लगा है होश और अनुभव को साथ लेकर चलना चाहता है । जनता एक स्थिर सरकार चाहती थी और उसे कांग्रेस से बेहतर विकल्प हाथ नहीं आया। कांग्रेस एक ऐसी पार्टी के रुप में उनके सामने आई जो युवाओं के हाथ में देश की कमान देना चाहती है।
राहुल गांधी मीडिया की नजरों में पहली बार तब आए थे जब सोनिया गांधी ने अपने पति की सीट अमेठी से पर्चा भरा था। तब मीडिया से अपरिचित सहमे से राहुल अपनी मां के साथ हौसला बढा़ने के लिए पीछे खडे़ थे और आज की बात करें तो बस एक तस्वीर का जिक्र होना चाहिए जो अभी तक मीडिया द्वारा रिलीज की हुई राहुल की आखिरी तस्वीर है। यह तस्वीर है अमेठी प्रमाण पञ लेने जाते हुए चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी मुस्कुराहट और बहन प्रियंका को थामें हुए राहुल भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यहां पर राहुल ने प्रियंका का सहारा लिया हुआ नहीं है बल्कि वह उनके साथ उन्हें भीड़ से बचाते हुए दिख रहे हैं। अपने परिवार के साथ ही देश को भी यह संदेश दे रहे हैं कि अब उनके कांधे इतने मजबूत हो गए हैं कि वह जिम्मेदारियों का निर्वाह कर सकते हैं। बस देश को समझना है कि जिम्मेदारिया का मतलब सीधे प्रधानमंञी पद नहीं है।
आज सभी मान रहे हैं कि कांग्रेस की तस्वीर बदलने में राहुल गांधी का हाथ है पर यहां दिलाना जरुरी है कि यह सब आज का काम नहीं है। जब सभी नेता आने वाले चुनाव की बाते कर रहे थे तब यह कॉलेजों का दौरा कर रहा था। युवाओं से मिलरहे थे अपने कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे। युवा कांग्रेस में चुनाव की रणनीति तैयार कर रहे थे। अपने क्षेञ के दौरों के दौरान दलितो के घर रुकते थे और वहीं भोजन करते थे। संसद में पहली बार आवाज उठाते हैं तो कलावती जैसी गरीब महिला के मुद्दे पर।
अपने पिता की तरह बाते करने वाले राहुल अपने पिता की तरह ही बैरियर को तोड़कर जनता से मिलते हैं, पिता की तरह ही विरोधी पार्टियों की कमिया निकालने के बजाए सिस्टम को सुधारने की बाते करते हैं। उनकी रैली के दौरान अगर कोई गिर गया खुद उसे उठाने जाते हैं और सुरक्षार्मियों को हड़का भी देते हैं। सफेद कुर्ते पायजामे में नजर आने वाला यह नौजवान राजनैतिक पारी खेलना चाहता है लेकिन पूरी तरह से तप जाने के बाद। व़ह कोई पद सम्भालना चाहते है लेकिन देश की हर छोटी बडी़ समस्या को जान लेने के बाद, राजनीति का अनुभव लेने के बाद ही राजनैतिक पदों पर दावेदारी चाहते हैं यानि कि अपने योग्यता के बल पर न की गांधी उपनाम की एवज में। राहुल किसी जाति और सम्प्रदाय की बात नहीं करते, किसी सम्प्रदाय की बात नहीं करते वह बात करते हैं देश के आम नागरिक की, वह बात करते हैं व्यवस्था में लग चुके कीडो़ की।
देश भर में ताबडतोड़ 100 ज्यादा जनसभाएं करने वाले राहुल ने अपनी ईमानदारी और साफगोई से लोगों का दिल जीत लिया। कल तक जो विरोधी राहुल को बच्चा मान रहे थे वो गच्चा खाने के बाद मुंह बंद किए बैठे हैं। इस युवा गांधी में देश आने वाले भविष्य की तस्वीर देख रहा है। एक बात जो इन चुनावों में खुलकर सामने आई वह यह है कि लोग घुटे हुए नेताओं और उनके घटिया राजनैतिक पैतरों से छुटकारा पाना चाहते है।
आज की युवा पीढी सोचती है कि युवा भारत के सपने को पूरा करने के लिए यूथ फैक्टर की जरुरत है और यही कारण है युवाओं ने राहुल और उनकी युवा चौकडी़ को बिना किसी भ्रम के साथ मौका दिया। राहुल के आस पास दिखने वाले चेहरों की बात करें तो उसमें युवाओं की संख्या ज्यादा माञा में मिलेगी। कांग्रेस ने टिकट बांटने के मामले में भी युवाओं को तरजीह दी। जब सभी राजनेता और राजनैतिक दल ओछी बाते कर रहे थे मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के हथखंडे़ अपना रहे थे और दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे थे ऐसे में राहुल गांधी विकास की बात कर रहे थे। हर दल का नेता अपने को प्रधानमंञी पद का दावेदार बनाने में व्यस्त था तब मीडिया के बार-बार उकसाने के बावजूद राहुल ने मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंञी पद का उम्मीदार बताया। उन्होंने कहा कि व़ो देश के लिए काम करना चाहते है। उनकी यही बात लोगों के दिल को छू गई कि जोश से भरा यह युवक जिसके नाम के साथ गांधी लगा है होश और अनुभव को साथ लेकर चलना चाहता है । जनता एक स्थिर सरकार चाहती थी और उसे कांग्रेस से बेहतर विकल्प हाथ नहीं आया। कांग्रेस एक ऐसी पार्टी के रुप में उनके सामने आई जो युवाओं के हाथ में देश की कमान देना चाहती है।
राहुल गांधी मीडिया की नजरों में पहली बार तब आए थे जब सोनिया गांधी ने अपने पति की सीट अमेठी से पर्चा भरा था। तब मीडिया से अपरिचित सहमे से राहुल अपनी मां के साथ हौसला बढा़ने के लिए पीछे खडे़ थे और आज की बात करें तो बस एक तस्वीर का जिक्र होना चाहिए जो अभी तक मीडिया द्वारा रिलीज की हुई राहुल की आखिरी तस्वीर है। यह तस्वीर है अमेठी प्रमाण पञ लेने जाते हुए चेहरे पर आत्मविश्वास से भरी मुस्कुराहट और बहन प्रियंका को थामें हुए राहुल भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ रहे हैं। यहां पर राहुल ने प्रियंका का सहारा लिया हुआ नहीं है बल्कि वह उनके साथ उन्हें भीड़ से बचाते हुए दिख रहे हैं। अपने परिवार के साथ ही देश को भी यह संदेश दे रहे हैं कि अब उनके कांधे इतने मजबूत हो गए हैं कि वह जिम्मेदारियों का निर्वाह कर सकते हैं। बस देश को समझना है कि जिम्मेदारिया का मतलब सीधे प्रधानमंञी पद नहीं है।
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