मेरी राहों में बिछाए रहता था पलकों को
आज गिरने पर भी न हाथ बढा़ने वाला
कल तलक मेरी उंगली पकड़ चलता था
मेरे आंगन के बीच दीवार उठाने वाला
चाय के पैसे बचा लेता है आफिस में
कुनबे का बोझ कांधों पर उठाने वाला
हर दर पर मंजिल का गुमान होता है
कहां खो है मेरा गया राह दिखाने वाला
मेरी ही यादों में लिपट कर रोया होगा
यूं अचानक पहलू से उठकर जाने वाला
अब तो ख्वाबों में दिखता है धुंधला सा
किस देश में जाकर बसा है जाने वाला
दिन भर हकीकत की धूप में जलता है
शाम को परियों की कहानी सुनाने वाला
वो मुसाफिर कुछ देर ठहरा था शहर में
अब कोई आए उसका जादू मिटाने वाला
मेरे गुनाहों की राह में आगे-आगे था जो
एक वो भी था मुझपर पत्थर उठाने वाला
क्या कहूं किस तरह जिंदगी ने लूटा है
मैं न था मायूसी का साथ निभाने वाला
हो सके तो एक बार लौट कर आ जाना
जर्रा जर्रा तुम्हे है मेरा हाल बताने वाला
दरवाजे पर टिकी रहती है मां की निगाहे
हर पल लगे है अबकि बेटा है आने वाला
क्या करु हारना सीखा नहीं तमन्ना ने
खुदा बनकर अब आए मुझे हराने वाला
बहुत बहुत बहुत सुन्दर ......बधाई
ReplyDeleteBahut badhiya likha hai,
ReplyDeletehaan thodi lambi ho gayi hai rachna...
Aur compact-si hai so padhne men dikkat hoti hai thodi...
neeraj ji agali baar se dyan rakhoongi
ReplyDeleteshukriya
Sonalika,
ReplyDeleteI think it's beautiful. Actually no words to say. Simple words but touching & deep.
Though I am not a good poet but I think each & every word has written very well & leangth doesn't matter because without it you were not able to express whole story of it. It's just ways of writing. One person can write whole thing in 2 lines, other takes so many line.
i would say its an amazing composition...
ReplyDeletetruly written using the ink of the heart....
keep writing....
also visit my recent composition "kya ye paisa sab kuch khareed sakta hai"
shukriya.
अति सुन्दर रचना है!
ReplyDelete---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
तमन्ना जी मान गए....आप में हुनर है जो शब्दों से सब कुछ कह देती हैं
ReplyDeletekal talak meri ungali pakad ke
ReplyDeletechalata tha..
meri aangan me diwar uthane wala
sach kaha aapne..aaj ke duniya ka charitr chitran..
badhiya geet...
badhayi!!!
कल तलक मेरी उंगली पकड़ चलता था
ReplyDeleteमेरे आंगन के बीच दीवार उठाने वाला
दिन भर हकीकत की धूप में जलता है
शाम को परियों की कहानी सुनाने वाला
bahut sundar lagin ye panktiyan!
वाह !! क्या बात है !!!
ReplyDeleteaapki kavita padhte- padhte zindgi ke kai bhaav ek saath jee gai.
ReplyDeletebaut sunder likha aapne
ग़ज़ल को देखता हूँ तो सोचता हूँ ये कोई पत्रकार है या शाईर ... बहुत उम्दा है कुछ शेर और कंही कंही जानी पहचानी सी आहटें भी देती है सुनाई
ReplyDeletebahut achcha likha hai
ReplyDeleteमेरे गुनाहों की राह में आगे-आगे था जो
ReplyDeleteएक वो भी था मुझपर पत्थर उठाने वाला
Behtareen......
दिल को छू गयी रचना।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
संजय कुमार मिश्र
ReplyDeleteसोनालिका जी बहुत संुदर रचना है। शब्दों का ताना बाना बुनना कोई आपसे सीखे। काबिले तारीफ है।
वो मुसाफिर कुछ देर ठहरा था शहर में
ReplyDeleteअब कोई आए उसका जादू मिटाने वाला
vaise to ghazal ka har sher lajwab hai par is sher ka koi mukabla nahi....amarjeet kaunke
once again amazing writing sonalika.
ReplyDeleteHow beautifuly u describe the pain of mother.
Good luck
वाह सोनालिका जी.......
ReplyDeleteआपकी तमन्ना ने काफी सोचने पर मजबूर किया........
बहुत खूब......
बेहद सुंदर ...और अल्फाज़ नही ..मेरी आँखें नम हो आयीं ...
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