Sunday, July 26, 2009

ये इंसानी सांप

सांपों से बडा़ ही डर लगता था मुझको, उसके जहर से ज्‍यादा उसके शरीर के चकत्‍ते मेरे दिमाग की नसे सुलगाने लगते थे। गंदे चकत्‍ते, अजीब सी घिन आती उसकी लपलपाती जीभ से, उसकी आंखे हमेशा डर पैदा कर देता था मेरे अंदर। आज सोचती हूं तो लगता है शायद यह डर कम और घिन ज्‍यादा थी मुझे। रेंगते फिस्‍स फिस्‍स करते सांप। एक अजब बात यह भी थी कि दुनिया भर की भीड़ में वो बस मुझे ही दिखते थे। मुझे हर कहीं ये, कितनी भी भीड़ हो इस पर सबसे पहली नजर मेरी ही पड़ती थी। आपको यह जानकर घोर आश्‍चर्य होगा कि मैं जहां भी गई वहां पर सांप जरूर निकले और उन्‍हें देखा भी सबसे पहले मैंने ही। अब तो यह हाल हो गया था कि मैं जहां भी नई जगह रहने जाती मुझे यह इंतजार होता कि सांप कब निकलेगा।
मुझे अपनी पढा़ई के लिए कई जगहों पर रहना पडा़, कभी इस शहर और कभी उस शहर हर शहर में सांपों से मुलाकात हो जाती थी। धीरे-धीरे जिंदगी आगे बढती रहती, इन सांपों ने अपना रूप बदलना शुरू कर दिया था। पहले ये जमीन पर रेंगते रहते थे अब यह गली में, चौराहों पर, सड़कों में, बाजारों में, बसों में, टैम्‍पों में और दुकानों में मुझे मिलते ही रहते हैं। ये इंसानी सांप। इनके चेहरे चितकबरें नहीं थे बेहद खूबसूरत थे लेकिन आंखे वहीं कुटिल इनकी जुबान भी हमेशा लपलपाती रहती है। इनके फन हमेशा डसने को तैयार रहते हैं। इनके पास विष नहीं होता लेकिन जबान बडी़ ही विषैली होती है। यह विषैली जबान तब ज्‍यादा सक्रिय हो जाती है जब कोई लड़की सामने से गुजर जाती है। अक्‍सर ये बसों में सरसराते रहते हैं गंदे कीडों की तरह । सड़कों पर लहराते रहते हैं। बचपन के सांपों से कहीं ज्‍यादा घिनौने होते हैं ये मन अजीब सी गिजगिजाहट से भर जाता है लेकिन आप इतना जान ले अब सांपों से डर नहीं लगता क्‍योंकि अगर मैं और मेरी जैसी हर लड़की जानती है कि अगर इस दुनिया में जीना है तो इन सांपों के बीच से ही गुजरना होगा। लड़कियां नहीं डरती इन सांपों से बस घृणा करती हैं।

26 comments:

  1. लोगों के अपने-अपने डर होते हैं। वह तभी निकलते हैं, जब उनका सामना हो जाए।

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  2. इनके चेहरे चितकबरें नहीं थे बेहद खूबसूरत थे लेकिन आंखे वहीं कुटिल इनकी जुबान भी हमेशा लपलपाती रहती
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    सही कहा है वास्तविक साप तो कम जहरीले है पर इनसे बचना मुश्किल है.
    अच्छे तीक्ष्ण स्वर के लिये साधुवाद

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  3. insey bhi khtarnak asteen ke sap hotey hai,yeh to visheley hotey hai.

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  4. इन साँपों से डर कर नहीं हिम्मत से और कठोरता से काम लेना होता है....तब ये पास नहीं भटकते....वाकई दुनिया तमाम तरह के साँपों से भरी पड़ी है

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  5. are waah ......bahut hi sundar baat kahane ki bat kari jindagi me agar aap ladaki ho to in sapo se bachaka r hi nikalana haga .......bahut hi gahari bat aapane kahane ki koshish kari hai...

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  6. sach kaha aapne...ye insaani saanp bahut khatarnaak hote hain

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  7. वाकई में सब जगह पाये जाते हैं. उचित ही लिखा है.

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  8. लगता है आप काफी कोमल ह्रदय वाली है। आपका लेख रोमांच से भरा है। अच्छा लेख।

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  9. इन साँपों से कोई जगह खाली नहीं है. पहले सुनते थे शहरों में बेहतर कानून व्यवस्था और शिक्षा के स्तर के कारण ये सांप उतने प्रभावी नहीं होते पर अब तो दिल्ली जैसे शहरों की घटनाएँ डरा देती है.
    इन साँपों से एक पिता भी बेचैन रहता है.

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  10. भै वाह बेटियाँ हों तो ऐसी बस हिम्मत से इनका समना करो तो डर कर भाग भी जाते हैं बहुत बडिया सटीक आलेख बधाई

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  11. सटीक आलेख बधाई....

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  12. ऐसे साँपों के फन कुचल देने में ही समझदारी है.

    बहुत सही लिखा है.

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  13. असल सांप तो फिर भी सेफ हैं जी..आप डर जायज है.

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  14. acha hoga agar hum apni rajniti ke saanpo ko pehchaan payein...
    bahut achhi rachna...keep it up..

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  15. Dear Sonalika
    Aapne kitni aasani se aaj ki sabse badhi problem ko keh diya, aur bata bhi diya ke is ke zaher se aap jaisi ladkiya na daregi.

    bhot aacha likha aapne.

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  16. in sanpo se darta kaun hai? sach to ye hai ki ye bahut darpok hote hain....isliye to chuchaap shikaar ki talash karte hain..... inke muh ko kuchalna aa gaya hai ab

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  17. बहुत सच्चा और कड़ुवा अनुभव है
    ---
    विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

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  18. Comment karne mein itni der is wajah se hui kionki main heading dekhkar samajh gaya tha ki kuch khas hoga aur tha bhi fursat se padha hoon bhut theek likha hai.

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  19. in saapon ki manovrati bhi badal chuki hai...pehle ye chip kar vaar karte the....lekin aaj ye khuleaam vaar karte hain...sabke saamne...aur doosre saanp bhi jo aapke aas paas reng rahe hote hain in hamla karne wale saanpo ko rokne ki bajae aur badhava dete hain...aisa lagta hai poora samaaj zehreela ho chuka hai....lekin main kaun hota hu ye kehne wala ki poora samaaj zehreela ho chuka hai......ho sakta hai mujhme aur doosre purusho me se kuch saanp aise bhi ho jo zehreele na ho?...kair chodiye....bahut khoob likha hai aapne...badhai ho apko...kalam chalti rahe...

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  20. Sach hai ki hame aaye din aise saapon ka samna karna hota hai. In ghinaune saapon ki mansikata to shayad hi kabhi badle isliye ab ladkiyo ko hi majboot hona hoga. Is gambhir samasya ko tumne khoobsoorti se bayan kiya hai.

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  21. bahut hi steek likha hai
    aaj ki nangi sachchaaee ko khoobsurti
    aur hausle se bayaan kiya hai....
    apne aatmvishvaas ke bal par
    isi darr ko apni shakti mei badal daaliye
    dasne aur daraane wale saanp kuchle bhi ja sakte haiN .
    ---MUFLIS---

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  22. AISE SAANP POORI DUNIYA MEIN LAISE HUVE HAIN....HIMMAT HO TO SAB DURUST HO JAATE HAIN..... SACHI POST HAI AAPKI....

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  23. sonalika ji blog padhne ke liye dhanyawad..apne bilkul sahi kaha ki mera patr pradhanmantri ji ki jagah madam ko hona chahiye tha isilye maine patr ke ant me ye kaha hai ki ''agr patr 10 janpath bhejta to jyada sahi hota"
    apke blog me comment ke sthan pe msg likhne ke liye maafi chahta hu.sandesh bhejne ka koi vikalp maujood na hone ki wajah se yaha pe apni baat aap yak pahunchayi.

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  24. Excellent! What an imagination! What a comparison! You hit hard on rising ill psychosis in the society. Even the great Urdu poet Bhai Munawwar Rana says about derision of moral values. Rana Sahab says:

    ख़ाली मटकी की शिकायत पे हमें भी दुख है
    ऐ ग्वाले मगर अब गाय का थन दुखता है

    उम्र भर साँप से शर्मिन्दा रहे ये सुन कर
    जबसे इन्सान को काटा है तो फन दुखता है

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