Friday, August 7, 2009

किसी राह में किसी मोड़ पर...




जाने क्‍यों लगता है,
फिर मिल जाओगे मुझे
किसी राह पर किसी मोड़ पर,
जाने क्‍यों अजनबी शहर की
हर एक शय में,
बेबस निगाहें ढूंढ़ती हैं
तुम्‍हारी सी कोई पहचान,
जाने क्‍यों डूबते सूरज के साथ
मेरी लाल ओढ़नी में
महकने लगते हैं
तुम्‍हारी पीली डायरी के
कुछ सूखे फूल।
शहर के बेपनाह शोर में
उभरता है एक सन्‍नाटा
और गूंजने लगते हैं,
कुछ शेर, कुछ नज्म़ें
वो कविता जो पढ़ी थी
तुमने कभी मेरी आंखों में।
अचानक चमकती सड़क की
सफेद पट्टियां
बदल जाती हैं तुम्‍हारी शर्ट की पट्टियों में
जिस पर गिरा था
एक सुनहरा पंख पीपल के तले
अपनी उंगलियों से उठाकर जिसे
सुपुर्द किया था डायरी को,
जाने कैसे
रिक्‍शे की नीली छत
बदल जाती है नीली छतरी में
और बरसने लगता है सावन
यूं सिमटने लगती हूं मैं
जैसे मुझे घेरे हों तुम्‍हारी बाहें।
कभी-कभी कॉफी से उठता
सफेद धुआं तब्‍दील हो जाता है
एक बर्फबारी में,
जिससे जड़ जाती है
कमरे की हर चीज,
दो जलते हाथ थाम लेते हैं मुझे
और पिघलने लगती हूं मैं।
फिर मिल जाओगे मुझे,
किसी राह में किसी मोड़ पर...

19 comments:

  1. बहुत खूबसूरत !!!
    जाने कैसे
    रिक्‍शे की नीली छत
    बदल जाती है नीली छतरी में
    और बरसने लगता है सावन
    यूं सिमटने लगती हूं मैं
    जैसे मुझे घेरे हों तुम्‍हारी बाहें।
    कभी-कभी कॉफी से उठता
    सफेद धुआं तब्‍दील हो जाता है
    एक बर्फबारी में,
    जिससे जड़ जाती है
    कमरे की हर चीज,
    दो जलते हाथ थाम लेते हैं मुझे
    और पिघलने लगती हूं मैं।
    फिर मिल जाओगे मुझे,
    किसी राह में किसी मोड़ पर...

    जैसे शाम के धुंधलके में दूर से आती बंशी की मधुर धुन
    जैसे रात के सन्नाटे में किसी झील में धीरे धीरे उतरता चाँद
    जैसे अमराईयों में पत्तों से छनती हुयी शुभ्र उज्जवल ज्योत्सना.

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  2. अचानक चमकती सड़क की
    सफेद पट्टियां
    बदल जाती हैं तुम्‍हारी शर्ट की पट्टियों में
    जिस पर गिरा था
    एक सुनहरा पंख पीपल के तले
    अपनी उंगलियों से उठाकर जिसे
    सुपुर्द किया था डायरी को,
    जाने कैसे
    रिक्‍शे की नीली छत
    बदल जाती है नीली छतरी में
    और बरसने लगता है सावन
    यूं सिमटने लगती हूं मैं
    जैसे मुझे घेरे हों तुम्‍हारी बाहें।

    बहुत खूब... शब्दों को खूबसूरती से चुनना और फिर उन्हें नजाकत के साथ कविता में पिरो देना बखूबी आता है तुम्हे। तुम्हारी कविता दिल को छू गई।

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना .......बधाई

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  4. Bhaav bahut pyare hai sonalika ! keep writing

    http://priya-priyankasworld.blogspot.com/

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  5. bahut hi achi rachna , dil ko chooti hui si .. aur yaado ko jagati hui si


    regards

    vijay
    please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

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  6. दो जलते हाथ थाम लेते हैं मुझे
    और पिघलने लगती हूं मैं।
    फिर मिल जाओगे मुझे,
    किसी राह में किसी मोड़ पर...
    behad khubsurat bhav badhai

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  7. बेहद खूबसूरत रचना. भावनाओ का प्रवाह

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  8. जाने क्‍यों लगता है,
    फिर मिल जाओगे मुझे
    किसी राह पर किसी मोड़ पर,
    जाने क्‍यों अजनबी शहर की
    हर एक शय में,
    बेबस निगाहें ढूंढ़ती हैं



    haan kai baar aisa hota hai.....


    bahut hi sundar kavita...... sebtiments ko abhut hi khoobsoorti se piroya gaya hai......

    badhai.....


    and thnx for ur motivating n beautiful comment......

    Regards........

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  9. behtareen peshkash aapki
    achcha likhte ho aap
    aap hamare blogs par aaye hope aapko
    achcha lagega...
    thnx blogger
    aleem azmi

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  10. सोनालिका जी एहसास और भावनाओं को व्यक्त करने का आपका अंदाज और आपकी लेखनी मुझे बहुत पसंद आती है....दिल के करीब सी लगती है रचना

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  11. hi Dear
    bahut hi acchi kavita hai bus yu samjho dil ko chu gayi
    khair ye jarror kahunga ki aaj ki bhagdaud me ye kavita kuch sukun deti hai but ye ahsasbhi karati hai ki kash kuch fursat ke pal bhi mil sake to kitna accha hota

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  12. sonalika

    namaskar

    deri se aane ke liye maafi ..

    bahut der se aapki is poem par ruka hua hoon ... kaise likh liya ji itni gahri chooti hui nazm.. jiske akshar akshar kuch na kuch kah raha hai .. mera salaam kabul kare is shaandar rachna ke liye ....

    meri badhai sweekar kare .

    regards,

    vijay
    www.poemsofvijay.blogspot.com

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  13. ye dusra comment hai ji , ab jaldi se aap next poem likho ...ji

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  14. bahut hi badiya likha he aapne

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  15. sachmuch dil ko choo gayi ye rachna....badhayi

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