बीज कोई अब नया बोती नहीं हूं मैं,
इसलिए अफसुर्दा होती नहीं हूं मैं।
मिल न जाए कोई नया सूरज मुझे
इस डर से रात भर सोती नहीं हूं मैं।
मेरे दर्द उसकी आंखों से छलकते हैं,
मां जब सामने हो, रोती नहीं हूं मैं
एक दुआ को ओढ़ रखा है सिर पर,
मुश्किलों में हौसला खोती नहीं हूं मैं।
दर्द कोई भी हो, हंसकर उडा़ दिया
बेकार के लम्हों को ढोती नहीं हूं मैं।
मेरी आदतें जमाने का चलन न सही,
मैली ही चूनर सही, धोती नहीं हूं मैं।
मेरी आदतें जमाने का चलन न सही,
ReplyDeleteमैली ही चूनर सही, धोती नहीं हूं मैं।
बेहतरीन गज़ल -- बेहतरीन रचना
संवेदनाओ का बेहतरीन सिलसिला
umda............
ReplyDeleteअफसुर्दा माने ?
ReplyDeleteअफसुर्दा का मतलब गमगीन होता।
ReplyDeleteमेरे दर्द उसकी आंखों से छलकते हैं,
ReplyDeleteमां जब सामने हो, रोती नहीं हूं मैं
एक दुआ को ओढ़ रखा है सिर पर,
bahut bhaavnaon se paripurna kavita.............
ati umdaa...........
thanx for sharing............
10+++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
A++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++++
बेहतरीन. रचना बधाई।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteसोनालिका जी
ReplyDeleteसादर वन्दे !
मेरे दर्द उसकी आंखों से छलकते हैं,
मां जब सामने हो, रोती नहीं हूं मैं
एक दुआ को ओढ़ रखा है सिर पर,
मुश्किलों में हौसला खोती नहीं हूं मैं।
बहुत ही सुन्दर रचना ! क्या कहने .
रत्नेश त्रिपाठी
दर्द कोई भी हो, हंसकर उडा़ दिया
ReplyDeleteबेकार के लम्हों को ढोती नहीं हूं मैं।
मेरी आदतें जमाने का चलन न सही,
मैली ही चूनर सही, धोती नहीं हूं मैं।
waah dard ko yu dhua hone dena bhi ek kala hi hai,behtarin rachana,shayad alfaz kum kahen tariff ke liye,bahut badhai
बीज कोई अब नया बोती नहीं हूं मैं,
ReplyDeleteइसलिए अफसुर्दा होती नहीं हूं मैं।
Flawless !! Really !!
ek ghazal maini bhi likhi thi kabhi....
par aapki nazm ke saamne kuch nahi...
//अफसुर्दा दुआ का असर होता नहीं,
महवे-यास,महवे-सफ़र होता नहीं //
//ग़र होता खुदा हमनवायाने सुखन,
दुनियाँ में हश्र-ओ-कहर होता नहीं //
//जो होती न यूँ रौशनी ये पुरअसर,
गुम तारीकियों में शहर होता नहीं //
अफसुर्दा =दुखी; महवे-यास=गम में डूबा हुआ; महवे-सफ़र=यात्रा मग्न; हमनवायाने सुखन=मित्र; हश्र=प्रलय; तारीकियों=अंधेरों
very thoughtful approach.
ReplyDeletenice poem.
http://www.ashokvichar.blogspot.com
मिल न जाए कोई नया सूरज मुझे
ReplyDeleteइस डर से रात भर सोती नहीं हूं मैं।
bahut hikhubsurt aur gahra sher hai....amarjeet
kya baat hai ji....
ReplyDeletedill khush kitta tusi...
वाह क्या खूब लिखा है...बेहतरीन
ReplyDeleteBahut khoob...... Behtareen...... Bahut khoobsoorat rachna hai. Har line me bahut gahrai hai.
ReplyDeletebahut hi sunder rachna hai
ReplyDelete-Sheena
आज दर्पण के यहाँ से फिर देखा तो चला आया हूँ पर मालूम हुआ कि आपको सबसे पहले से ही फोलो कर रहा हूँ मैं फिर क्या बात हुई .....रचना में कुछ नए शब्दों ने मुझे अचंभित कर दिया है.
ReplyDeleteसोनालिका जी मैंने लिखा था कि अचंभित कर दिया अभिप्राय ये था कि किस खूबसूरती से शब्दों का उपयोग किया गया कि उनका वजूद खुल कर आता है और किसी का रौशन हो जाना ही अचम्भा है. एक पत्रकार के शब्दों में अक्सर हैरानी जगाने वाला भाव आज कल दिखाई नहीं देता है. ये या तो काम का दवाब है या फिर पेशे से उपजी उदासीनता. आपकी ग़ज़ल बहुत उम्दा है नज्में अभी देखी नहीं...
ReplyDeleteJeevan ki rawaanee see lagee gazal.
ReplyDelete{ Treasurer-T & S }
गम से निजात मिल ना सकी
ReplyDeleteहर बीज को रौशनी मिल ना सकी
umr gava di maine kyu gulshan ke intezar mein
ReplyDeleteab kantoon ko bhi dekh ke kabhi roti nahi hu main.
behad khubsurat rachna hai aapki
बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये बधाई...
ReplyDeleteसभी शेर पसंद आये
खूबसूरत गजल
वीनस केसरी
बहुत सुन्दर व बढिया रचना है बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति,दमदार सच बयां करती हुई रचना.
ReplyDelete@www.sachmein.blogspot.com
"दर्द कोई भी हो, हंसकर उडा़ दिया
ReplyDeleteबेकार के लम्हों को ढोती नहीं हूं मैं।"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं...
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
तमाम बातें तो बहुत अच्छी हैं लेकिन चूनर न धोए जाने से इत्तेफाकक नहीं ऱखता, कुछ उदासियां बचा ले गई हो तुम.... पूरी ग़ज़ल अगर सकारात्मकता की गवाही दे रही है तो, मख्ता नकारात्मकता की चादर ओढ़ने की कोशिश करता दिख रहा है.... ख्यालों के परवाज़ में आज़ादी की बजाय खुदमुख्तारी का असर भी दिखा.... लेकिन ममता की छांव में इसकी सियाह रुह कहीं दफ्न हो गई...अंत में........ बंधनों को तोड़ने से पहले ये जरुर सोच लेना चाहिए कि तोड़ने की वजह क्या बन रही है.... अगर बेवजह तोड़ा तो सृजन की उम्मीद खत्म हो जाती है। आतिश और शम्अ में फर्क न हो तो बस्तियां जलते देर नहीं लगती। बहरहाल कोशिश शानदार है.....
ReplyDeletebaut sundar rachna hai , padhkar bahut achha laga.....well executed
ReplyDeleteमिल न जाए कोई नया सूरज मुझे
ReplyDeleteइस डर से रात भर सोती नहीं हूं मैं।
behtareen
Behtarin gazal. Bus ek hi sher hai apki tareef me:
ReplyDeleteSamandar hoke bhi wo pyasa nikal gaya
Darya uske khayal se gahra nika gaya