Sunday, June 28, 2009

ओ चंचला कभी मेरी गली भी आ

कभी-कभी हमारे घर की दीवारों की नसों में द्रुत गति से बहने वाली हे चपला, हे चंचला, तुम्‍हारे आने से जिंदगी रौशन हो जाती है, मेरे घर का कोना-कोना चहकता है, खुशियां बिखरती है, गीत गुनगुनाते हैं, ताल नृत्‍य करते हैं। तुम्‍हारा छम से आना और पल भर में मायूस कर चले जाना मुझे अच्‍छा नहीं लगता। आंखों के साथ पूरे शरीर से ही नमकीन पानी बह बह कर शरीर में पानी की कमी कर देता है। वैसे तुम्‍हारी यह चंचलता खेल खेलती है हमसे, जब हम उदास और निराश होते हैं। तुम्‍हारी आहट मात्र से खिल उठता हूं। इस तपती, जलती दुनिया में एक तुम्‍हारा ही तो आसरा है। तुम अपने साथ लाती हो गर्माहट से भरे ठंडी हवा के झोंके। जो मेरे लिए मरुस्‍थल में नदी के समान हैं। जानती हो, हमारा हर पल तुम्‍हारा इंतजार करता है, जाने क्‍यों तुम रूठ गई हो, जबकि हम मान लेते हैं तुम्‍हारी हर शर्त। दुनिया के गमों और जलते आसमां-धरती से बचकर मैं तुम्‍हारी छांव में कुछ पल सांस लेना चाहता हूं। मेरे जीवन में खुशी के दो पल देने के लिए ही आ जाओ। आ जाओं कि बिन तुम्‍हारे सब सुख यंत्र बेकार हैं।
कई रातों से हम सोए नहीं हैं, तुम्‍हारी अनुभूति थपक कर नींद की वादियों तक ले जाती है पर अचानक ही तुम्‍हारे न होने का एहसास दावानल की तरह अहसास दिला जाता है, हर कहीं आग ही आग बीच रात में बीच दोपहर का एहसास तड़पाता है हम अक्‍सर घबरा कर उठ कर बैठ जाते हैं। एक मीटर प्रति सेकेंड की गति कई बार कभी टैरेस कभी छत तो कभी कमरे में ही बौराया से फिरते हैं । गर्म बारिश भिंगोती है, सारी रात जागते है, हमारे रजों गम, जो तुम्‍हारे न होने के गम को और भी बढा देते हैं। उकता कर के हम भागते हैं खुले आसमां की चाह में, लेकिन दिन भर सूरज की आग में जली जमीन बन जाती है भट्टी और जल जाता है बदन इस ताप में। जब तुम आई थी तो मिले थे कुछ दरिया, जिनमें डूब कर कुछ देर मैं सुखानुभूति महसूस कर लेता हूं पर यकीन करो उनसे निकलते ही तुम्‍हारा इंतजार होता है। ओ चंचला कभी हमारी गली में भी आ, हर चेहरा खिल उठेगा, हर कोना रौशन होगा, तुम्‍हारे आंचल की हवा में कुछ पल सो सकूंगा, हमारे बच्‍चे भी सो सकेंगे जो तुम्‍हारे न होने के गम को और भी भयानक बना देते हैं। ठहरो और देखो तुम्‍हारे आने से मेरे घर में खुशी कैसे मचलती है। सुकून पसरता है। हे चंचला मैं तुम्‍हारी स्‍तुति करता हूं, तुम्‍हारे बढे़ हुए दामों को भी अदा करता हूं लेकिन तुम हो कि मेहरबान नहीं होती हूं। आओं कि घर का पंखा और कूलर तुम्‍हारी राह जोह रहा है। आओ कि बल्‍ब जलने को बेकरार है। तुम तो यूं आती हो मेरे घर जैसे ममता बनर्जी दिल्‍ली आती हैं। देखो तुम्‍हारा ऐसे विपत्ति की घडी़ में रूठना ठीक नहीं। मेरा दुखी मन आज कल तुम्‍हारी आने जाने की आदते देख कर एक ही गाना गाता है देर से आना जल्‍दी जाना ऐ साहिब ये ठीक नहीं।

9 comments:

  1. अल्लाह करे जोर-ए-कलम और ज्यादा

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  2. सचमुच उसका इतना रूठे रहना अब बहुत दुखदायी हो गया है.....जल्दी आओ

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  3. हम भी दुआ करते हैं आप की चंचला जल्दी आएँ
    बहुत अच्छा लेख...

    धन्यवाद

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  4. बहुत बढिया लिखा है।.....अब शीला जी ने वादा तो किया था चंचला मौजूद रहेगी.......पता नही......यह भी अब उन की पार्टी की सदस्या हो गई है सो.....नजर कम ही आती है। अब सिवा इंतजार क्र और क्या कर सकता है कोई......

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  5. मनभावन लेखन अन्दाज

    आभार
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

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  6. लेखन का दिलकश अंदाज

    अच्छा लगा

    आज की आवाज

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