Sunday, June 28, 2009

तुम्‍हारी उर्मिला

तप रही है ये जमीन
इस बार मानसून नहीं आया अब तक
फट रहा है धरा का कलेजा
बारिश की चाह में
हाहाकार मच रहा है, चहुं ओर
बहुत दिन हो गए भीगे हुए
मुझे भी तो, तुम्‍हारे स्‍नेह में
उर्मी, उर्मी सुन रही हो तुम
सुन रही हूं, तुम्‍हारी पुकार को
आज बस तुम्‍हे ही सुन रही हूं मैं
तुम्‍हारी कही साकेत की लाइने
उर्मिला की पीडा़
कितनी गहनता से जाना था
समझा था तुमने उर्मिला की पीडा़ को
खंगाला था कवि के साथ
तुमने भी तो उसके अंर्तमन को
पर क्‍या कभी झांका तुमने
मेरे भी अंर्तमन में, जहां बस गए थे तुम
सुनाते सुनाते साकेत को कह जाते थे कितना कुछ
मेरी आंखों में झांकते हुए तुमने कही कितनी अनकही बातें
तुम्‍हारा राह रोककर खड़े हो जाना
रूठ जाना, खुद मान जाना
सब जान जाते थे बिन कहे
फिर क्‍यों नही जाना
अपनी उर्मी की पीडा़ को
जाने कब पा लिया था तुमने हर अधिकार
कब दिया था मैने तुम्‍हें यह अधिकार
कब मैं खो गई साकेत में
ओढ कर जामा उस नायिका का
एक न आने वाले पथिक की आस में
बन गई हूं तुम्‍हारी उर्मिला

12 comments:

  1. अत्यंत उत्कृष्ट रचना
    कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत !

    शुभकामनायें !

    आज की आवाज

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  2. आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगता है .... भावनाएं, एहसास, प्रेम ...ये सब मिलता है मुझे इनमें

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति

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  4. बहुत उम्दा रचना!!

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  5. Bahut achchhi prastuti....umda kavita.Aisa lagta hai ki hindi ke shabdon par aapki pakad bahut hi achchhi hai.
    Navnit Nirav

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  6. achcha laga magar kab tak yahi padhein kuch aur bhi ata karo, kuch yadein ,kuch batein ,kuch pal kuch lamhe zindagi ke tajrubaat dimaag ki uljhanein ... kuch to aur likho han zaroor likho

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  7. Tumhari rachnae padhakar accha lagta hai. Behtareen likhati ho tum...... mujhe hamesha tumhari agli rachana ka intazar rahta hai..... Agli kavita ka intazaar rahega........

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  8. achhi rachnaa hai
    mn ke samveg ka khoobsurat alfaaz mei izhaar
    badhaaee

    ---MUFLIS---

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  9. एक न आने वाले पथिक की आस में
    बन गई हूं तुम्‍हारी उर्मिला
    सुन्दर व्यथा कथा
    बेहतरीन

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  10. Sonalika, ham to pahli baar aaye aapke blog par....aapki rachnao ne to baandh kar rakh liya.....kalam majboot hain aapki..... aap hamare hi shaher se hain..is baat se aur jayada khushi hui

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  11. naa aane walon kaa intzaar karti bahut hi khubsurat kavita hi.....dr.amarjeet kaunke

    www.amarjeetkaunke.blogspot.com

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